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श्रीमाल से निकले हुए लोक अधिक तर गुजरात और मारवाड में वसे यह उपर कहा जा चुका है। गुजरात में पाटण की स्थापना के पहिले श्रमिाल नगर धन धान्य, आबादि व्यपार तथा राज-सत्ता से सर्वतया संपन्न था परंतु वह समृद्धि नष्ट होगई । पाटण में जो भी सुवर्ण रत्नादि की खदान न थी। तो भी वह महान प्रभावशाली राजाओं का राजनगर था, और
राजद्वारे महालक्ष्मी व्यापारण तथैवच । इस न्यायसे वह लक्ष्मी का धाम था । श्रीमाल नगर तूट कर वहां के निवासी पाटण में जा बसे अर्थात् श्रीमाल पुराण के कथनानुसार श्रीमाल की लक्ष्मी पाटण में आई ।
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पोरवाड ज्ञाति की उप्तत्ति ।
पोरवाड ज्ञाति का श्रीमाल नगर से बहुत घनिष्ट संबंध है; श्रीमाली तथा ओसवाल महाजनों का आपुस में तथा श्रीमाल नगर से जिस प्रकार का संबंध है उस से बिलकुलही निराले प्रकार का पौरवाडों का श्रीमाल से है। ओसवालों का मूल श्रीमालियों में है, किन्तु पारेवाडों की शाखाएं श्रीमालियों के संगठन में सम्मिलित हुई हैं। ओसवालों की