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होना याने उन पर लक्ष्मी की कृपा होना ठीकही है । अब रहे ब्राह्मण । उस समय ब्राह्मणों को भूदेव कहा जाता था। इन के बिना कोई कार्य न होता था । लक्ष्मी के कृपापात्र लोक
(श्रीमंत लोक ) धर्म से उदासीन नहीं रह सकते। इन लोगों • के धर्म कृत्योंके वास्ते और खासकर अपनी पूर्ति के वास्ते चहूं
ओर से ब्राह्मण आकर्षित होना आश्चर्य नहीं । श्रीमाल नगर समृद्धिशाली होने से इस पर कई लोगोंने आक्रमण किया । शनैः शनैः सुवर्णादि रत्नोंकी खदाने रिक्त हो गई, और कालकी विक्राल दंष्ट्रा में श्रीमाल नगर नामशेष होगया ।
पहिले बताया हुआ श्रीमाल नगर बसानेवाला राजा श्रीमल्ल को गौतम स्वामीने जैनों के तीर्थंकर श्रीमहावीर स्वामी के शिष्य थे, जैन-धर्म की दिक्षा दी थी।
वि० संवत ११७६ से मारवाड गुजरात में द्वादश वर्षीय दुष्काल पडा तब से शनैः शनैः यह नगर शून्य होता चला । नगरवासि गुजरात, काठियावाड, जांगल, पद्मावती, मारवाड आदि स्थानों में चले गये । अधिक तर वनराज के बसाये हुए पट्टण में यहां के श्रीमान तथा माननीय लोक जा बसे । तब से श्रमिाल की अवनती ही होती गई। वहां से लक्ष्मी रुष्ट हो गई सबब श्रीमाल नाम बदल कर उस नाम का भिन्नमाल में परिवर्तन हुआ। यह भिन्नमाल छोटे कसबे के रूप में अब भी उसी स्थान पर स्थित है।