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अमुक देवने इतने ब्राह्मण उप्तन्न किये। यह केवल अलंकार है। उप्तन्न किये याने कहीं आकाश वा पाताल से नही लाए अथवा काष्ट वा मृतिकाके नहीं बनाये। परंतु अबतक जो क्षत्रिय वा ब्राह्मण नहीं कहलाते थे उन्हें क्षत्रिय वा ब्राह्मण मानने लगे। निवास स्थानपरसे संघ स्थापित किये गए। जैन और बौद्ध संघमें मिलनेवाले ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, निजी धन्दा छोडकर वणिक वृत्ति ले रहने लगे। इस समय श्रीमालनगर भारत के प्रसिद्ध नगरों में से एक था। पट्टण की स्थापना न हुई थी; और वृद्धनगर ( बडनगर ) गुजरात में कोई ( बडा शहर ) नगर न था । श्रीमाल नगर गुजरात मारवाड की सरहद्द पर महान् समृद्धिशाली नगर था । वहां की राज सत्ता और व्यापार, अखिल गुजरात और मारवाड में फैला हुआ था। इसी कारण अन्य स्थान के निवासियों के सन्मुख श्रीमाल नगरचासी अपने को श्रेष्ठ मानने लगे और उन्होंने अपने नगर के नाम का अपना गौरव पूर्ण जत्था कायम किया। वहां के ब्राह्मण, श्रीमाली ब्राह्मण के नाम से प्रसिद्ध हुए। व्यापारी श्रीमाली वणिक् ( बनिये ) इस नाम से जाने गये। सोनी श्रीमाली सोनी, पोरवाड श्रीमाली पोरवाड कहलाए। याद रहे, ऐसे नाम कहीं वाद विवाद कर निश्चित नहीं किये जाते। किन्तु ऐसे निगठित समूह को परगांव के लोक उनके नगर के नाम के साथ संबोधन करने लगते हैं और कालांतर से वह नाम निश्चित हो जाता है। उक्त श्रमिाल वणिक संघों में से ही पोरवाड ज्ञाति भी एक है।