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नाम से पहिचाने जाने वाले अठारह बीस ग्रंथ उपलब्ध हैं वे अन्योन्य स्थल वासियों के हितार्थ भिन्न भिन्न काल में रचे गए हैं । इसमें मनुस्मृति और याज्ञ वल्क्य स्मति ऐसे दो मुख्य ग्रन्थ हैं । देश के सब लोग इन्हीं दो प्रन्थों को मानते थे और इन्हीं के आधार पर शासन पद्धति स्थित थी। जिनशास्त्रकारों को कालधामानुसार कोई विशेष नियमों की अवश्यकता ज्ञात हुई उनोंने उक्त दो ग्रन्थों को प्रमाणभूत लेकर पुरवणी रूप आवश्यक नियम निर्माण किये । गृहसूत्र, मनुस्मृति तथा याज्ञवल्क्य स्मृतियों में वर्णसंकर प्रजा के कुछ थोडे नियम हैं । इन जातियों का जिस विभाग में जैसा जैसा विस्तार होता गया वैसे वैसे उस प्रांतवासि शास्त्रकारों को विशेष नियम निर्माण करने पडे। यही कारण है कि कोई स्मृति में ऐसे नियम थोडे हैं और कोई में अधिक हैं । एक से दूसरी, दूसरी से तीसरी, तीसरी से चौथी ऐसी उत्त. रोत्तर बढने माली ज्ञातियों के नाम उनों के सांसारिक तथा धार्मिक अधिकार और उनों का निर्वाह साधन आदि के विस्तृत नियम निर्माण किये गये हैं । “औषनस स्मृति" वर्णसंकर जाति के नियमों का खास ग्रंथ है । इस स्मृति में इन जातियों के संबंध में जितना विस्तार पूर्वक लिखा है उतना और किसी स्मृति में नहीं लिखा है । इसका कारण यही प्रतीत होता है कि, जिस प्रदेश में “औषनस स्मृति का उपयोग होता हो उसमें ज्ञातियों का बाहुल्य होना चाहिये।