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स्त्री से होने वाली प्रजा "निषाद" अथवा "पार्शव" नाम की जाति हो। यह शूद्र से जरा उच्चवर्णीय हो; और ये सुनार का धन्धा करके अपना निर्वाह करे । इस प्रकार जाति मत्सर के कारण एकही पुरुष से होने वाली प्रजा मैसाल के उच्च नीच वर्णानुसार से भिन्न भिन्न जाति की तथा भिन्न भिन्न अधिकार की होने लगी। ___ अनुलोम लग्न से एक ब्राह्मण तीन नयी जातियों की उत्पत्ति करे । एक क्षत्रिय दो जातियों की वृद्धि करे; और एक वैश्य एक जाति भेद बढावे । यह अनुलोम जाति भेद और उससे विपरीत अन्य प्रतिलोम जाति भेद, इतने भेद तो केवल चार वर्ण के मिश्रण से हुए। यदि यह भेद की गाडी यहीं पर अटकती तो भी ठीक होता । परंतु जिस जाति मार्ग पर वह चल रही थी उस मार्ग का अंत आना कठिन था। चतुर्वर्ण स्थूलता पाने के पश्चात् अनुलोम जातियां बनी । अब इन नयी जातियों की प्रजा के मूल चार वर्ण की प्रजा के साथ लग्न हो तो उनसे उत्पन्न होने वाली प्रजा का सामाजिक आदि दर्जा निश्चित करने की आवश्यकता हुई। इसी प्रकार अनुलोम प्रतिलोम प्रजा का आपसी लग्न होकर उत्पन होने वाली प्रजा का स्थान भी निश्चित करना आवश्यक हुआ । यह कार्य और इसके निर्वाह के साधनों की व्यवस्था होने के पश्चात इनकी प्रजा और मूल वर्षों की अनुलोम प्रतिलोम जातियां अथवा उन्होंके मिश्रण से उत्पन्न हुई वर्ण.