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उक्त दोनों लेख की प्रथम पंक्ति के अंत में "सं. ९०८२ वर्षे " लिखा है परंतु यह संवत कौनसा है इसका ठीक ठीक पता अभी चलता नहीं । इसी अनुसार गाणेसर गुजरात की जैन मंदिर की निम्नोक्त प्रशस्ति में भी आरंभ में ।। ९० ।। लिखा है वह समझ में नहीं आता । यह सं. १८०२ होना संभवनीय है ।
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पेथडशाह तथा मुंजाल ।
प्रसिद्ध प्राग्वाट वंशीय चंडसिंह के सात पुत्रों में से सबसे बडे पेड और पांचवे मुंजाल थे। ये पाटण के राजा कर्णसिंह के समय हुए । पेथडशाह ने शत्रुंजय तथा गिरनार की यात्रा के संघ निकाले थे। पेथड के संबंध में विमल प्रबंध में लिखा है कि:
"वाहड जाहड पेथड तणी कलियुग्री कीरति वरतई घणी "
मुंजाल इनसे भी प्रभावशाली थे । वे कर्णदेव के मंत्री थे । उन्हें महामात्य की पदवी थी। इनके समय पाटण में ये ही कर्ता हर्ता थे और वहां जैनों की बडी चलती थी । राजा कर्णदेव की पट्टराणी मिलनदेवी, महाजन जैन वंशीय थी। और इन्हीं के अनुरोध से उसका कर्णदेव के साथ विवाह हुआ था । रणिवास तथा राज्य में इनका हिलाया पत्ता हिलता था । मुंजाल की कीर्ति दूर दूर तक फैली