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जिनप्रभु सूरि ने अपने तीर्थकल्प में अर्बुद कल्प के प्रकरण में लिखा है कि, जब भीमदेव धांधुक पर क्रुद्ध हुआ तब विमल ने भक्ति से भीमदेव को प्रसन्न कर धांधुक को चित्रकूट [ चितौर ] से वि. सं. १०८८ में धांधुक की आज्ञा लेकर बडे खर्च से विमल वसही नामक मंदिर बनवाया । चित्तौर उस समय धार के राजा भोज देव के अधिकार में था और भोज वहां रहा भी करता था ।
विमल बडा बहादुर था उसने मालवा और सिंध पर आक्रमण कर अच्छी जीत मिलाई थी । पोरवाड महाजन व्यवहारज्ञ होते हैं वैसे बहादुर | भी होते हैं । समय पडने पर कायरता नहीं दिखाते। वालीनाथ की हकीगत पहिले पाठक पढ ही चुके हैं ।
विमल वसही :
अर्बुदाचल पर विमलशाहने जो अनुपम मंदिर बनवाया है वैसा शिल्प का उच्चतम नमुना संसार भर में केवल वही
* राजानक श्री धान्धु के क्रुद्धं श्रीगुर्जरेश्वरम् ;
प्रसाद्य भक्त्या तं चित्रकूटा दानीय तग्दिशे ॥ ३९ ॥ विक्रमे वसुवस्वाशा १०८८ मितेऽब्दे भूरि व्य्यात्, सत्प्रासादं सविमल बसत्यव्हं व्यधापयत् ॥ ४० ॥
( तीर्थकल्प - अबुदकल्प ).
8 तद्भीत्याऽष्टादश शत ग्रामाधिप धार नृपो नष्टवा सिंधुदेशेगतः । तदनुशाकंभरी, मरुस्थली, मेदपाट, ज्वालापुरादि प्रसादात् साधयित्वा छत्रमेकमधारयात् ।
नृपति शत अम्बिका ( उपदेश -माला )