SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ णमो जिणाणं. जाहिर खबर. श्री जिनमतिमाको वंदन-पूजन करनेकी अनादि सिद्धि. - इस ग्रंथमें चैत्य शब्दसे भगवत्ती-ठाणांग-समावायांगज्ञाताजी आदि मूल आगमोंके पाठानुसार मंदिर-मूर्ति अनादि सिद्ध किया है, जैन शासनमें साधु-साध्वी-देव-देवी और श्रावक-श्राविकाएँ अनादि कालसे जिन प्रतिमाको यथायोग्य वंदन-पूजन करते आये हैं, आगे करते रहेंगे, यह विधिवादका अनादि नियम है परंतु वीर मभुके निर्वाण बाद बोद्धोंकी देखादेखी से या बारह वर्षी दुष्काल में नवीन शुरू नहीं हुआ है. और जैसे शक्करके हाथी, घोडे, गाय, गधे वगैरह खिलोनें बनते हैं, वो सब अजीव हैं, तो भी उनका नाम लेकर खावे तो हाथी, घोडे, गायकी हिंसाका पाप लगता है, तथा पत्थरकी गायको गाय मारनेके भाव करके मारे तो गाय मारनेकी हत्या लगे और अपनी माता-वहिन व स्त्रीकी इज्जत लेनेवाला दुष्ट शत्रुका फोटो देखनेसे या उसका नाम सुननेसे आदमी को रोम रोम में कषाय व्याप्त होकर राग द्वेषसे तीव्र काँका बंध होता है. तैसेही जिन मंदिरमें जिनेश्वर भगवान् की मूर्तिको देखनेसे जिनेश्वर भगवान्के अनंत गुण याद आते हैं; उससे भक्त जनोंके रोम रोममें भक्तिभाव व्याप्त होकर जिनेश्वर भगवान् के गुणोंका स्मरण करनेसे अनंत कर्मों का नाश होता है. और भाव सहित पूजा करने से भगवान्की पूजा का महान् लाभ मिलता है, इत्यादि अनेक युक्तियों के साथ इस विषय संबंधी बेचरदास की और ढूंढिये-तेरहापंथियों की सब शंकाओंका सर्व कुयुक्तियोंका समाधान सहित अच्छीतरहसे खुलासा लिखनेमें आया है, यह ग्रंथ भी सबको भेट मिलता है. AEST
SR No.032002
Book TitleDev Dravya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherNaya Jain Mandir Indore
Publication Year1920
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy