SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२७] जगह देवद्रव्य बहुत होगया अब देवद्रव्यकी वृद्धि करने की है, ऐसा कहने वालोंकोभी वैसेही निर्विवेकी समझने चाहिये. अहमदाबाद में देवद्रव्य बहुत होगया होवे तो उसको अन्य मारवाड, मेवाड, मालवा वगेरह देशों में जिन मंदिरों के कार्यों में योग्यता मुजब खर्च करनेका उपदेश देना, और प्रबन्ध करवाना योग्य है परंतु बहुत कहकर निषेध करना योग्य नहीं है. जरूरत नहीं अगर बम्बई, तीर्थक्षेत्रों में व जीर्णोद्धारादि ४६ अगर कोई कहे कि देवद्रव्यकी बहुत जगह गेरव्यवस्था होरही है इसलिये अब उसको बढाने की जरूरत नहीं है, ऐसा कहना भी उचित नहीं है. क्योंकि बहुत जगह देवद्रव्यका अभाव होनेसे पूजा आरती नहीं होती, बहुत जिन मंदिर जीर्ण होगये हैं, उन्होंका उद्धारभी नहीं हो सकता तथा बहुत जगह देवद्रव्यकी अच्छी व्यवस्थाभी देखने में आती है इसलिये देवद्रव्यकी तो अभी बहुत जरूरत है, परंतु जैसे श्वेत वस्त्र पहिरनेवाले साधुओं में साधुधर्मकी बहुत गेरव्यवस्था होनेलगी तब उसको सुधारने के लिये पीले वस्त्र पहिरने शुरू करके साधुधर्म की अच्छी व्यवस्था चलाई. तैसेही जहां जहां पुराने त्रस्टी लोग देवद्रव्यकी गेरव्यवस्था करते होवें, वहां वहां नवीन सभा, मंडल वगेरह संस्था स्थापनकरके देवद्रव्यकी अच्छी व्यवस्था होने के उपाय करने चाहिये, प्रत्येक गांव, नगरादिकमें अपना २ सर्वसंघ इकठ्ठा करके पुराने ऋष्यों के पास से देवद्रव्यका पूरा पूरा हिसाब लेना चाहिये तथा आगे लिये वर्ष वर्ष में या दो दो वर्ष में देवद्रव्यकी सार संभाल रक्षा व उचितरीतिसे वृद्धि करने वाले नये नये त्रष्टी बनाने चाहिये, दर वर्ष पर्युषणा पर्व ऊपर एक रोज सब संघ के समक्ष वर्ष भरके देवद्रव्यके जमा खर्च के हिसाब की तपास होना चाहिये, ४-५ आगेवानों की सलाहसे अगर देवद्रव्य व्याजे देना पडे तो आभूषणादि या मकानादि स्थापना रखे बिना किसीको अंगउधार दिया न जावे और वार्षिक खर्च के जितना या
SR No.032002
Book TitleDev Dravya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherNaya Jain Mandir Indore
Publication Year1920
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy