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________________ [२५] ४ अभी देवद्रव्यकी वृद्धि बहुत होगई है या नहीं ? देवद्रव्य की वृद्धि बहुत होगई है इसलिये अभी देवद्रव्यकी वृद्धि करने की जरूरत नहीं है, ऐसा विजयधर्मसूरिजीका लिखना सर्वथा- झूठ है. ४२ पहिले राजा, महाराज, बलदेव, वासुदेव, चक्रवर्ती, शेठ, सेनापति, सार्थवाह वगैरह लाखों, करोडों, या अरबों रुपये अपने घरसे खर्चकरके जीर्णोद्धारादि कार्य करते थे, और मोती, माणिक्य, स्वर्ण, रत्नादिकसे भगवान् की हमेशा पूजा करते हुए उनसे देवद्रव्यकी वृद्धि करते थे तथा स्वर्ण के जिनमंदिर व रत्नोंकी जिन प्रतिमा भरवातेथे, संप्रति राजा जैसे महान् पुण्यशाली पुरुषने सवालक्ष जीर्णोद्धार करवाये, सवाकरोड जिन बिंब भरवाये, उनकी सार संभाल प्रभू भक्ति की व्यवस्थाके लिये करोडों रुपयों की अपने राज्यकी वार्षिक आवक खर्च की थी तथा उस समय जैन समाजमें हजारों करोड पती सेठ साहुकार अपने घरके करोडों रुपये भगवान् की भक्ति में खर्च करनेवाले मौजुद थे, उस समयभी भक्तजनों के भगवान्की भक्ति में व आत्मकल्याण में विघ्न डालने रूप अभी देवद्रव्यकी वृद्धि बहुत होगई है करने की जरूरत नहीं है. ऐसा कहनेका किसीने भी था, तिसपरभी अभी इस पडते कालमें विजयधर्म वृद्धि बहुत होगई है अब उसकी वृद्धि करनेकी जरूरत नहीं है, ऐसा लिखकर देवद्रव्यकी वृद्धि करनेवाले भक्त लोगोंके आत्म कल्याण रूप भगवान् की भक्ति व जीर्णोद्धारादि कार्योंमें विघ्न डालते हैं यह बडी भारी भूल है, पूर्व समयकी अपेक्षा से अभी देवद्रव्य बहुत कम है. ४३ अभी हिन्दुस्थान में अनुमान ३६ हजार जिन मंदिर मौजूद कहे जाते हैं उन्हों के जीर्णोद्धारादिक कार्यों में अभी अनुमान ० या ५० करोडरुपयों का खर्च होसके और तीर्थ क्षेत्रादि सर्व शहर तथा सर्वगांवडोंके जिनमंदिरो में आभूषणादि व रोकड सब मिलकर अनुमान ૪ अब उसकी वृद्धि साहस नहीं किया सूरिजी देवद्रव्यकी
SR No.032002
Book TitleDev Dravya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherNaya Jain Mandir Indore
Publication Year1920
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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