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________________ [१• ] १७ अब सत्य तत्त्वाभिलाषी जनोंको मेरा यही कहना है कि भगवान् गृहस्थ अवस्था में दान देते थे वह तो परउपकार बुद्धि से देते थे, इसलिये लोगों के उपयोग में आ सकता था और अपन लोग तो स्वप्न उतारने वगैरहके कार्य भगवान् की भक्ति के लिये अर्पण रूप में करते हैं इसलिये इसका द्रव्य भगवान् की भक्ति में ही लग सकता है. मगर अन्य खाते में नहीं लग सकता जिसपर भी अभी इसके द्रव्यको साधारण खातेमें लेजाने का जो आग्रह करते हैं वो लोग ऊपर मुजब भक्तिसंबंधी व्यवस्था को समझे बिना देव द्रव्यके भक्षण के दोषी लोगों को बनाते हैं और आप भी बनते हैं. यह सर्वथा ही अनुचित है. १८ ऊपर के लेखका सारांश :- गृहस्थ अवस्था में भगवान् नहीं मानकर सिर्फ राजकुमार ही मानकर उन के जन्मसंबंधी स्नात्र पूजाका महोत्सव करते होवें, उसमें चढाये हुवे फल नैवेद्य या नगदादि द्रव्य अपने उपयोग में लेसकते होवें ? तथा पद्मनाभादि तीर्थकर महाराज अभी हुए भी नहीं हैं, सिर्फ नाम गौत्र बांधा है, उन्होंकी प्रतिमा के आगे चढाये हुए द्रव्यादि अपने उपयोग में आसकते होवें ? तबतो स्वप्न उतारनेका द्रव्यभी साधारण खातेमें करने में कोई हरकत नहीं है. मगर गृहस्थ अवस्था में भी भगवान् समझकर जन्म संबंधी स्नात्र पूजाका महोत्सव करते हैं उसमें चढाये हुबे द्रव्यादि देवद्रव्य होनेसे अपने उपयोग में नहीं आ सकते तथा पद्मनाभादिक की प्रतिमा को भी भगवान् समझकर उनके सामने चढाये हुए द्रव्यादि देवद्रव्य होनेसे अपने उपयोग में नहीं आसकते. उसी तरह श्रीवीरप्रभुको भी भगवान् समझकर उन्हों की भक्ति के लिये स्वम उतारे जाते हैं, उनका द्रव्य देवद्रव्य होने से साधारण खाते में नहीं हो सकता. जिसपर भी कोई करेगा तो वो देवद्रव्य के भक्षण का दोषी बनेगा. यद्यपि स्वप्न भगवान् की माता ने देखे हैं मगर अपन
SR No.032002
Book TitleDev Dravya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherNaya Jain Mandir Indore
Publication Year1920
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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