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________________ [५] इसलिये देवलोक से माता के गर्भ में आये तबही " समणे भगवं महावीरे पंच हत्थुत्तरे होत्था " अर्थात् ' श्रमण भगवंत श्रीमहावीर स्वामी के पांच क.याणक हस्तोत्तरा नक्षत्रमें हुए, ऐसा वचन खास सूत्रकारने आचारांग सूत्रमें, स्थानांग सूत्रमें और कल्पसूत्रादि आगमोंमें साफ खुलासा पूर्वक नैगम नयकी अपेक्षा से मूल पाठमें कथन किया है. इसी तरह से देवलोक से गर्भमें आनेके समय इन्द्रमहाराज भी तीर्थकर भगवान् जान करके ही विधिपूर्वक पूर्ण भक्ति सहित “ नमुत्थु णं" करते हैं, . और जन्म समय मेरु शिखरपर स्नात्र महोत्सव तथा नंदीश्वर द्वीपमें अट्ठाई महोत्सव करते हैं. यह अधिकार कल्पसूत्रादिक में प्रसिद्ध ही है. . . ८ औरभी देखो, अपने लोग अभी वर्तमानमें जन्म संबंधी स्नात्र पूजाका महोत्सव करते हैं, वह तीर्थकर भगवान् समझ करके ही करते हैं. उसमें फल, नैवेद्य या नगद रकम वगैरह जो कुछ चढाने में आती है, वह सब देवद्रव्यमें गिनी जाती है मगर जन्म संबंधी महो. त्सव गृहस्थ अवस्था की क्रिया समझ कर उस द्रव्यका उपयोग अपने नहीं करसकते और अन्य किसीकोभी उसका उपयोग नहीं करवा सकते, जिसपरभी उसका उपयोग अपन करें, अन्यसे करावें, तो देवद्रव्यके भक्षण के दोषी बनें. तैसेही स्वप्न और पालना के कार्यभी गृहस्थ अवस्थाकी क्रिया समझकर उनका द्रव्य अन्य कार्योंमें लगा तो देवद्रव्य की हानी करने के दोषी बनें. . . ... ९ औरभी देखो विचार करों, श्रेणिक राजाका जीव अभी तो प्रथम नरक में है, तीर्थकर हुआभी नहीं है, आगामी उत्सर्पिणी कालमें तीर्थकर होनेवाला है, अभी तो सिर्फ तीर्थकर नाम गौत्र बांधा हुआ है तोभी उनकी प्रतिमा पद्मनाभ तीर्थंकर रूपमें उदयपुर वगैरह शहरों में पूजीजाती है, उनके आगे चढाया हुआ द्रव्य देवव्य गिना जाता है, मगर अन्य कार्यमें उपयोग नहीं आ सकता.
SR No.032002
Book TitleDev Dravya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherNaya Jain Mandir Indore
Publication Year1920
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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