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________________ झूठी झूठी अन्य बातें लिखकर क्लेश बढानेका हेतु करने लगे इसलिये फजूल ऐसे झूठे पत्रव्यवहार को बंध करना पड़ा || यह बात तो प्रसिद्ध ही है कि आत्मार्थी महान्पुरुष होते हैं वो तो अपना झूठा आग्रह छोडकर तत्काल अपनी भूलका मिच्छामि दुक्कडं देते हैं, व भवभीरु होनेसे लोकलज्जा न रखते हुए सत्य वात ग्रहण करते हैं. और इस लोकके स्वार्थी, बाह्य आडंबरी व अभिनिवेशिक मिध्यात्वी होते हैं, वो तो अपने झूठे आग्रह को कभी छोड़ते नहीं, उन्होंको अपनी भूलका मिच्छामि दुक्कडं देना वडा मुश्किल होता है. इसलिये मूलविषयकी बातको छोडकर विषयांतर से या व्यक्तिगत आक्षेपसे, क्रोध व निंदाके कार्यों में पड़कर, क्लेश बढ़ाने लगते हैं, और अपनी झूठी वातको जमाने के लिये अनेक तरह की कुयुक्तियों से दृष्टिरागी भोले जीवोंको भ्रममें डालकर अपनी बात जमाने की कोशीस करते हैं. और विवादस्थ शंकावाली बातों का पूरापूरा निर्णय न होनसे भविष्य में समाज को बड़ा भारी धक्का पहुंचता है. एक मतपक्ष जैसा हाकर समाज में हमेश क्लेश होता रहता है. इस विषय में भी ऐसा न हो, इसलिये उसका निवारण करने के लिये ऐसी विवादस्य शंकावाली बातोंका पूरापूरा निर्णय समाज के सामने रखना योग्य समझकर सर्वतरह की शंकाओं का समाधान पूर्वक अब आगे उसका निर्णय बतलाया जाता है. इसको पूरापूरा उपयोग पूर्वक अवश्य बांचें, सत्यसार ग्रहण करें और अन्यभव्यजीवोंको सत्य बात समझाने की कोशीश करें, उससे तीर्थंकर भगवान् की भक्तिका और देवद्रव्यकी रक्षा होनेका बडा भारी लाभ होगा. विशेष क्या लिखें. .
SR No.032002
Book TitleDev Dravya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherNaya Jain Mandir Indore
Publication Year1920
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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