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________________ १५ हैं, वैसे ही मैं भी चाहता हूं. मगर देवद्रव्य की आवक को साधारण खाते. ले जाने संबंधी आपकी नवीन प्ररूपणा व्यवहारिक दृष्टिसे और शास्त्रीय दृष्टिसे भी अनुचित होनेसे इस विषय का विशेष निर्णय होने के लिये शास्त्रार्थ करना पडता है. इस लिये आप को उचित है कि शुष्क विवादकी हेतु भूत अन्यान्य बातें बीचमें लाना छोडकर धर्मवादके. लिये प्रतिज्ञा, मध्यस्थ वगैरह व्यवस्था करने को जल्दी से स्वीकार करेंगे. ४ मेरा शास्त्रार्थ आपके साथ है, आपकी तर्फसे कोई भी पत्र लिखे, मगर मैं तो आपको ही लिखुंगा. जबतक कि आप प्रतिज्ञा करके अपनी तर्फसे शास्त्रार्थ करनेवाले मुनिका नाम न लिख भेजेंगे. महेरबानी करके ऊपरकी तमाम बातोंका अलग अलग खुलासा लिखनाजी. संवत् १९७८ चैत वदी १० मुनि मणिसागर, इन्दोर. इन्दोर सिटी, चैत वदी १०, २४४८. श्रीयुत मणिसागरजी, 'आप का ' चौबे का चीठ्ठा ' मिला. जो मनुष्य एक दफे यह लिखता था कि ' मैं इन्दोरकी राज्यसभा में शास्त्रार्थ करने को तैयार हूं " वह आज इन्दोर के सेठियों को एकत्रित कर शास्त्रार्थ का नि नहीं कर सकता है, यह कितने आश्चर्य की बात है ? संघके एकत्रित करने की गर्ज हमको नहीं पड़ी है। यदि आपको शास्त्रार्थ कर विजय पताका फर्राने की सात दफे गर्ज पडी हो, तो आप संघ को एकत्रित करिये और हमको बुलाइये । जिस गांव में शास्त्रार्थ करना है, उस गांव का भी संघ शास्त्रार्थ में सम्मिलित नहीं होता है, तो फिर तुम्हारे साथ थूक उड़ाने में फायदाही क्या है ? बाकी आचार्य महाराज श्री की पत्रिका में आपने जो जो अनुचित बातें देखी हैं, वह आप के बुद्धिवैपरीत्य का परिणाम है, यह बात
SR No.032002
Book TitleDev Dravya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherNaya Jain Mandir Indore
Publication Year1920
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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