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कर्म का विज्ञान वह बालक आया था?
दादाश्री : माँ-बाप के साथ का जो हिसाब नियोजित है, जितना दुःख देनी हो तो दुःख देकर जाता है और सुख देना हो तो सुख देकर जाता है और एक-दो वर्ष का होकर मर जाता है, तो थोड़ा ही दुःख देकर जाता है और एक बाईस वर्ष का शादी के बाद मर जाता है तो अधिक दुःख देता है। ऐसा होता है या नहीं होता है?
प्रश्नकर्ता : ऐसा तो होता है, ठीक है।
दादाश्री : यानी ये दु:ख देने के लिए होते हैं और कुछ हैं वे बडी उम्र के होकर सुख देते हैं। ठेठ तक, पूरी ज़िन्दगी सुख देते हैं। ये सुख और दुःख देने के लिए ही आमने-सामने सारे संबंध हैं। ये रिलेटिव संबंध
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आज के कुकर्मों का फल इसी जन्म में? प्रश्नकर्ता : यह जो कर्म का फल आता है, तो मानो कि उदाहरण के तौर पर हमने किसीके विवाह होने में रुकावट डाली, तो फिर वापिस वैसा ही फल हमें अगले जन्म में मिलेगा? अपने विवाह होने में क्या वही मनुष्य रुकावट डालेगा? इस तरह से होता है क्या, कर्म का फल? उसी प्रकार से और उसी डिग्री का?
दादाश्री : नहीं, इसी जन्म में मिलता है, विवाह होने में दरार डालो, वह तो प्रत्यक्ष जैसा ही कहलाता है और प्रत्यक्ष का फल यहीं पर मिल जाता है।
प्रश्नकर्ता : हमने किसीके विवाह होने में रुकावट डाली, उससे पहले हमने विवाह कर लिया हो, तो कहाँ से मिलेगा?
दादाश्री : नहीं, यह उसी तरह का ही फल मिले, ऐसा नहीं है। आपने उसका जो मन दुखाया, वैसा आपका मन दुखने का रास्ता मिलेगा। ये तो किसीको बेटियाँ नहीं हों, वह किस तरह फल पाएगा? दूसरे लोगों की लड़कियों के विवाह होने में बाधा डाले और खुद की लड़कियाँ होती