________________
३४
कर्म का विज्ञान
एक व्यष्टि कम्प्यूटर है और दूसरा समष्टि कम्प्यूटर है। व्यष्टि में पहले सूक्ष्मकर्म जाते हैं और वहाँ से फिर समष्टि कम्प्यूटर में जाते हैं । फिर समष्टि कार्य करता रहता है। ‘मैं चंदूभाई हूँ', ऐसे रियली स्पिकिंग बोलना उसीसे कर्म बँधते हैं। ‘मैं कौन हूँ', इतना ही यदि समझ गया तो तब से ही सारे कर्मों से छूट गया। अर्थात् यह विज्ञान सरल और सीधा रखा है, नहीं तो करोड़ों उपायों से भी एब्सोल्यूट हुआ जा सके, वैसा नहीं है और यह तो बिल्कुल एब्सोल्यूट थियरम है।
कर्म - कर्मफल - कर्मफल परिणाम
प्रश्नकर्ता : पिछले जन्म के जो चार्ज हो चुके कर्म हैं, वे डिस्चार्ज रूप में इस जन्म में आते हैं। तो इस जन्म के जो कर्म हैं, वे इसी जन्म में डिस्चार्ज के रूप में आते हैं या नहीं?
दादाश्री : नहीं ।
प्रश्नकर्ता : तो कब आएँगे?
दादाश्री : पिछले जन्म के कॉज़ेज़ हैं न, वे इस जन्म के इफेक्ट हैं। इस जन्म के कॉज़ेज़ अगले जन्म के इफेक्ट हैं ।
प्रश्नकर्ता : लेकिन कुछ कर्म ऐसे होते हैं कि यहाँ पर ही भुगतने पड़ते हैं न, आपने ऐसा कहा है, एक बार ।
दादाश्री : वह तो इस जगत् के लोगों को ऐसा लगता है । जगत् के लोगों को क्या लगता है? हं... देख, होटल में बहुत खाता था और उससे मरोड़ हो गए।‘होटल में खाता था, वह कर्म बाँधा, उससे ये मरोड़ हो गए' कहेंगे। जब कि ज्ञानी क्या कहते हैं, वह होटल में किसलिए खाता था? ऐसा किसने सिखाया उसे, होटल में खाना ? किस तरह हुआ ? संयोग खड़े हो गए। पहले जो योजना की हुई थी, वह योजना परिणाम में आई, इसलिए वह होटल में गया। वे जाने के संयोग सारे मिल आते हैं। इसलिए अब छूटना हो तो छूटा नहीं जा सकता। उसके मन में ऐसा होता है कि अरे ऐसा क्यों होता होगा ?