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कर्म का विज्ञान
सोल रिस्पोन्सिबिलिटी आपकी ही है सारी, अनंत जन्मों से।
अपना ही 'प्रोजेक्शन' बावड़ी में जाकर प्रोजेक्ट करें, उस पर से लोग ऐसा कहेंगे कि बस, प्रोजेक्ट करने की ही ज़रूरत है। हम पूछे कि किसलिए ऐसा कहते हो? तब कहेंगे कि बावड़ी में जाकर मैं पहले बोला था कि, 'तू चोर है।' तो बावड़ी ने मुझे ऐसा कहा कि, 'तू चोर है।' फिर मैंने प्रोजेक्ट बदला कि, 'तू राजा है।' तो उसने भी 'राजा' कहा। तो भाई, वह प्रोजेक्ट तेरे हाथ में है ही कहाँ फिर? प्रोजेक्ट को बदलना, वह बात तो सच्ची है, पर फिर वह तेरे हाथ में नहीं है। हाँ, स्वतंत्र है भी और नहीं भी। 'नहीं' अधिक है और 'है' कम है। ऐसा यह परसत्तावाला जगत् है। सच्चा ज्ञान जानने के बाद स्वतंत्र है, नहीं तो तब तक स्वतंत्र नहीं है।
परन्तु अब प्रोजेक्ट बंद कैसे हो? खुद का स्वरूप जब तक मिले नहीं इनमें से कि 'मैं यह हूँ या वह हूँ?' तब तक भटकना है। यह देह मैं नहीं हूँ। ये आँखें भी मैं नहीं हूँ। अंदर दूसरे बहुत सारे स्पेयरपार्ट्स हैं, उन सभी में 'मैं चंदूभाई हूँ' ऐसा अभी तक भान है। ये सार नहीं निकाल सकते, इसलिए वे क्या समझते हैं? यह त्याग करता हूँ, वही मैं हूँ। इसलिए 'मैं' तो किसी भी ठिकाने पर नहीं रहा उसे। वह समझता है कि यह तप करता है, वही 'मैं' हूँ। यह सामायिक करता है वही 'मैं' हूँ। यह व्याख्यान देता है, वही 'मैं' हूँ। 'मैं करता हूँ' ऐसा भान है तब तक नया प्रोजेक्ट करता रहता है। पुराने प्रोजेक्ट के अनुसार भुगतता रहता है। कर्म का सिद्धांत समझें न, तो मोक्ष का सिद्धांत जान जाएँ।
रोंग बिलीफ़ से कर्मबंधन आपका नाम क्या है? प्रश्नकर्ता : चंदूभाई। दादाश्री : सचमुच में चंदूभाई हो? प्रश्नकर्ता : ऐसा कैसे कहा जा सकता है? सभी को जो लगता