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गुरु-शिष्य
उनसे कहें, ‘हे शुद्धत्मा भगवान, आप मुझे मार्गदर्शन दीजिए', तो वे देंगे। किसे ज़रूरत नहीं है गुरु की ?
प्रश्नकर्ता : आपके पास यथार्थ समकित हो जाए तो फिर गुरु की ज़रूरत नहीं है न?
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दादाश्री : फिर गुरु नहीं चाहिए। गुरु की किसे ज़रूरत नहीं है? कि मेरे जैसे ज्ञानीपुरुष को गुरु की ज़रूरत नहीं है । जिन्हें खुद के सर्वस्व दोष दिखते हैं !
प्रश्नकर्ता : आपने ज्ञान प्रदान किया तो उसमें सतत जागृत रहने के लिए गुरु का सत्संग अथवा गुरु का सामिप्य ज़रूरी है या नहीं?
दादाश्री : हाँ, उस सबकी ज़रूरत है न ! पाँच आज्ञा पालने की ज़रूरत है, सभी की ज़रूरत है !
प्रश्नकर्ता : अर्थात् गुरु की ज़रूरत है ही न?
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दादाश्री : गुरु की ज़रूरत नहीं है । यह साध्य होने के बाद गुरु कौन हैं फिर? साधक के गुरु होते हैं । ये मुझे साठ हज़ार लोग मिले हैं। उन्हें गुरु बनाने की ज़रूरत नहीं है
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प्रश्नकर्ता : उन्हें सत्संग की ज़रूरत है क्या?
दादाश्री : हाँ, सत्संग की ज़रूरत है । फिर, पाँच आज्ञा पालने की ज़रूरत
है।
प्रश्नकर्ता : यहाँ रोज़ आएँ, आप जब हों तब, उसकी ज़रूरत है न?
दादाश्री : मैं यहाँ पर होऊँ तब लाभ उठाएँ। रोज़ नहीं आएँ और महीने में एक बार आए तो भी हर्ज नहीं है।
प्रश्नकर्ता : आपकी गैरहाज़िरी में उस प्रकार की जागृति की ज़रूरत है या नहीं? सत्संग की ज़रूरत है या नहीं?