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गुरु-शिष्य
मतभेद कम होते जाएँगे, चिंता-क्लेश नहीं होंगे बिल्कुल भी। क्लेश हो तब तो गुरु हैं ही नहीं मुए, वे गलत हैं सारे!
नहीं गँवाना एक ही गुरु के लिए मनुष्य भव ___ लोग तो एक गुरु बनाकर रुके हुए हैं, हम नहीं रुकें। समाधान नहीं हो, वहाँ गुरु बदल ही देना। जहाँ पर अपने मन का समाधान बढे, असंतोष नहीं हो, जहाँ पर रुकने का मन हो वहाँ पर रुक जाना। बाक़ी ये लोग रुके हुए हैं, ऐसा मानकर रुकना नहीं। क्योंकि उसमें तो अनंत जन्म बिगड़ गए हैं। मनुष्यत्व बार-बार नहीं आता और वहाँ पर रुककर बैठे रहें तो अपना जन्म बेकार जाएगा। ऐसे करते-करते, ढूँढते-ढूँढते कभी मिल जाएँगे। मिल जाएँगे या नहीं मिलेंगे? हमें मुख्य वस्तु ढूँढनी है। ढूँढनेवाले को मिल जाती है। जिसे ढूँढना नहीं है, और 'ये हमारे मित्र जाते हैं वहाँ जाऊँगा' वह बिगाड़ दिया!
___ व्यवहार में गुरु : निश्चय में ज्ञानी प्रश्नकर्ता : हमने जिन्हें गुरु की तरह स्वीकार किया है, वे ज्ञानी नहीं हैं। ज्ञानी तो आप कहलाते हैं। तो गुरु और ज्ञानी दोनों को सँभालें या फिर गुरु को भूल जाएँ?
दादाश्री : हम 'गुरु रहने दो' ऐसा कहते हैं। गुरु तो चाहिए ही सब जगह। व्यावहारिक गुरु हों, वे तो अपने हितेच्छु कहलाते हैं, वे हमारा हित (श्रेय) देखते हैं। व्यवहार में कोई अड़चन आए तो उन्हें पूछने जाना पड़ता है। व्यवहारिक गुरु तो चाहिए ही हमें। उन्हें हमें हटाना नहीं है। ज्ञानीपुरुष तो मुक्ति का साधन बताते हैं, व्यवहार में कहीं दखल नहीं करते। अर्थात् ज्ञानीपुरुष तो मोक्ष के लिए हैं। आपके गुरु का और उनका कुछ लेना-देना नहीं है।
पहलेवाले गुरु छोड़ नहीं देने हैं। गुरु तो रहने ही देने हैं। गुरु के बिना तो व्यवहार किस तरह चलाओगे? ज्ञानीपुरुष के पास निश्चय जानने को मिलता है, यदि जानना हो तो। व्यवहारिक गुरु संसार में मदद करते हैं, संसार में हमें जो समझ चाहिए, वैसी सारी आगे के लिए हेल्प करते हैं, कोई परेशानी हो तो सलाह देते हैं, अधर्म में से मुक्त करवाते हैं और धर्म दिखाते हैं। ज्ञानी