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गुरु-शिष्य
___ इस काल में शिष्यों की सहनशक्ति नहीं है, गुरु में वैसी उदारता नहीं है। नहीं तो गुरु में तो बहुत उदारता चाहिए, बहुत उदार मन चाहिए। शिष्य का सबकुछ निबाह लेने की उदारता होनी चाहिए।
ऐसे धर्म बदनाम हुआ शिष्य गालियाँ दें तो भी समता रखे, वे गुरु कहलाते हैं। शिष्य तो कमज़ोर है ही, पर गुरु कहीं कमज़ोर होते हैं? आपको कैसा लगता है? गुरु तो कमज़ोर नहीं होते न! कभी शिष्य की भूल हो जाए और कुछ उल्टा बोल गया तो गुरु फन उठाता है, तो फिर शिष्य तो किस तरह आज्ञा में रहेगा? शिष्य की भूल हो जाए और गुरु भूल नहीं करे, तब शिष्य आज्ञा में रहता है। यह तो गुरु से भूल हो जाए, तो शिष्य किस तरह आज्ञा में रहेगा? गुरु की एक ही भूल देखे न, तो शिष्य आज्ञा में नहीं रहता। लेकिन फिर भी यदि गुरु की आज्ञा में रहा तो हो गया कल्याण!
सभी ओर स्वच्छंदी हो गए हैं। शिष्य गुरु को कुछ मानता नहीं और गुरु शिष्य को कुछ मानता नहीं फिर! शिष्य मन में विचार करे कि, 'गुरु में अक्कल कम है ज़रा। हमें अपने आप अलग तरह से सोच लेना है। गुरु तो बोलते हैं, पर हम करें तब न!' वैसा हो गया है यह सब। इसलिए शिष्य को गुरु कहेगा कि, 'ऐसा करना।' तो शिष्य मुँह पर 'हाँ' कहता है, पर फिर वापिस करता है कुछ अलग। इतना अधिक तो स्वच्छंद चला है। कोई एक शब्द का सही पालन नहीं किया। फिर शिष्य कहेगा, 'गुरु तो बोलते हैं, चक्रम हैं थोड़े।' ऐसा सब चलता है।
नहीं तो सच्चे गुरु और शिष्य के बीच में तो प्रेम की कड़ी इतनी अच्छी होती है कि गुरु जो बोलें, वह उसे बहुत अच्छा लगता है, वैसी तो प्रेम की कड़ी होती है। परंतु अभी तो इन दोनों में झगड़े चलते रहते हैं। गुरु कहेगा, 'ऐसा करना, मैं तुझे कह रहा हूँ। पर शिष्य करता नहीं। यह तो पूरे दिन सासबहू की कचकच के झगड़े जैसा गुरु-शिष्य में है वहाँ पर।' शिष्य के मन में भी ऐसा होता है कि, 'कहाँ भाग जाऊँ?' पर कहाँ भागे बेचारा? घर से तो भाग छूटा, घर पर तो आबरू बिगाड़ी। अब कहाँ जाएगा? पर कौन सँभाले