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गुरु-शिष्य
क्योंकि मिलावटवाले सोने को अकुलाहट कराएँ, तब फिर थोड़ा-थोड़ा सुधरता जाता है न! सच्चा सोना दिखता जाता है न!
भेद, गुरु - शिष्य के बीच.... प्रश्नकर्ता : सामान्य प्रकार से बाहर गुरु-शिष्य के बीच अंतर रहता है न? या एकाकार रहते हैं?
दादाश्री : एकाकार रहें तब तो दोनों का कल्याण हो जाए। परंतु शिष्य से प्याले फूटें तो गुरु चिढ़े बगैर रहते नहीं। वर्ना यदि गुरु-शिष्य कभी ऐसे पुण्यशाली हों और दोनों एकाकार रहें तो दोनों का कल्याण हो जाए। परंतु ऐसा रहता नहीं है। अरे, घड़ीभर भी खुद अपने ऊपर ही उसे विश्वास नहीं आता, ऐसा यह जगत् है, तो शिष्यों का तो विश्वास आता होगा? एक दिन दो प्याले फोड़ डाले हों न, तो गुरु ऐसे लाल आँखें दिखाते रहते हैं।
देखो उपाधियाँ (परेशानियाँ), पूरे दिन परेशानियाँ! और गुरु से कहते भी नहीं कि 'साहब मेरी परेशानियाँ ले लीजिए आप।' हाँ, ऐसे भी पूछा जा सकता है कि, 'साहब, आप किसलिए चिढ़ते हैं, बड़े व्यक्ति होकर?
प्रश्नकर्ता : पर हमसे गुरु को पूछा कैसे जाए? हम तो पूछ ही नहीं सकते न, गुरु से?
दादाश्री : गुरु से पूछे नहीं, तब गुरु का क्या करना है ! शिष्य के साथ मतभेद पड़ता हो, तो नहीं समझ जाएँ कि आपका शिष्य के साथ मतभेद पड़ जाता है, तो कैसे गुरु आप! यदि एक शिष्य के साथ सीधे नहीं रहते, तो आप दुनिया के साथ कब रहेंगे फिर! यूं तो सभी को सलाह देते हैं कि, 'भाई, झगड़ा बिल्कुल मत करना। पर आपका तो कोई रिश्तेदार नहीं, प्रियजन नहीं, अकेले हैं, फिर भी इस शिष्य के साथ किसलिए आप कलह करते हैं? आपके पेट से जन्म तो लिया नहीं, तो आप दोनों को किस चीज़ के कषाय हैं? कषाय तो इन व्यवहारवाले लोगों के होते हैं। परंतु यह तो बाहर से आकर बेचारा शिष्य बना है, वहाँ भी कषाय करते रहते हैं?'
यदि पुस्तक इधर-उधर हो गई हो तो गुरु क्या कहते हैं? कितनी ही