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गुरु-शिष्य
कुछ भी नहीं करना पड़ता, अपने आप ही हुआ करता है, तब समझना कि छुटकारा हुआ ।
शक्तिपात या आत्मज्ञान ?
प्रश्नकर्ता : गुरु शक्तिपात करते हैं, वह क्या क्रिया है? उससे शिष्य को क्या फ़ायदा होता है? वह सिद्धि, आत्मज्ञान के लिए छोटा रास्ता है ?
दादाश्री : आत्मज्ञान ही प्राप्त करना है न आपको ? आपको आत्मज्ञान की ही ज़रूरत है न? तो उसके लिए शक्तिपात की कोई ज़रूरत नहीं है। शक्ति बहुत कम हो गई है ? तो विटमिन लो !
प्रश्नकर्ता : नहीं, नहीं । गुरु शक्तिपात करते हैं, वह क्रिया क्या है?
दादाश्री : यदि पाँच फीट का चौड़ा नाला हो और नहीं कूदा जा रहा हो, बार-बार वह असफल हो रहा हो, तब हम कहें कि, 'अरे, कूद जा, मैं हूँ तेरे पीछे।' तो वह फिर कूद जाता है ! अर्थात् गुरु इस प्रकार हिम्मत बँधवाते हैं। तो क्या करते हैं? हिम्मत टूट गई है आपकी?
प्रश्नकर्ता : गुरु के बिना तो हिम्मत टूट ही जाएगी न!
दादाश्री : तो किसी गुरु से कहना, वे हिम्मत बँधवाएँगे। और यदि गुरु राज़ी नहीं हों तो मेरे पास आना । गुरु राज़ी रहें तो मेरे पास मत आना। राजीपा (गुरुजनों की कृपा और प्रसन्नता) ही लेना है इस जगत् में! क्योंकि उन्हें तो, गुरु को क्या ले जाना है? सिर्फ आपको किस तरह से सुख प्राप्त हो, कैसे आपको आत्मज्ञान प्राप्त हो, वैसा उनका हेतु होता है।
प्रश्नकर्ता : कईं गुरु शक्तिपात करते हैं, इसलिए यह प्रश्न पूछा है।
दादाश्री : वह ठीक है । वैसा करते हैं, वह मैं भी जानता हूँ, लेकिन उसकी ज़रूरत कब तक है? वे गुरु शक्तिपात करके फिर खिसक जाते हैं, ठेठ तक साथ नहीं देते। वैसा किस काम का? साथ दें, वे गुरु अपने ।
प्रश्नकर्ता : चमत्कारी गुरु हों तो वहाँ जाएँ?