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गुरु-शिष्य
है, और गुरु अकेले में- प्राइवेटली देते हैं। जो महान गुरु हैं, ज्ञानीपुरुष, वे प्राइवेटली देते हैं कि आप इस तरह अपने शिष्यों के साथ काम लेना, तो आप डूबोगे नहीं और दूसरे भी नहीं डूबेंगे।
प्रश्नकर्ता : गुरु होने के लिए गुरुकिल्ली चाहिए, तो वह गुरुकिल्ली क्या है?
दादाश्री : ज्ञानीपुरुष उसे ऐसी समझ दे देते हैं कि, 'तू ऐसा है और यह सब ऐसा है। तू यह गुरु नहीं बन बैठा है। नामवाला गुरु बन बैठा है। तू अनामी है। तू लघुत्तम रहकर गुरुता करना, तो तू तर जाएगा और दूसरे लोगों को तारेगा।' यह तो गुरुकिल्ली उनके पास है नहीं और गुरु बन बैठे हैं। 'ज्ञानी' के पास से गुरुकिल्ली समझ लेनी चाहिए। 'ज्ञानीपुरुष' के पास से गुरुकिल्ली ले आनी चाहिए, तो उसकी सेफसाइड रहेगी।
इसलिए लोग हमें कहते हैं कि, 'आप क्या हैं?' मैंने कहा, 'मैं तो लघुत्तम पुरुष हूँ। मुझसे छोटा जीव इस दुनिया में कोई दूसरा है ही नहीं।' अब लघुत्तम पुरुष किसी जगह पर डूबेगा?
प्रश्नकर्ता : नहीं डूबेगा।
दादाश्री : लघुत्तम! यानी सिर्फ स्पर्श होगा, परंतु डूबेगा नहीं। मेरे साथ बैठे हैं, वे भी नहीं डूबेंगे। क्योंकि ज्ञानीपुरुष खुद लघुत्तम होते हैं और तरणतारण हो चुके होते हैं। खुद तर गए हैं और अनेक लोगों को तारने में समर्थ होते
हैं
फर्क, गुरु और ज्ञानी में... प्रश्नकर्ता : गुरु और ज्ञानीपुरुष, उन दोनों में फर्क समझाइए।
दादाश्री : ज्ञानीपुरुष और गुरु में तो बहुत फर्क है। गुरु हमेशा संसार के लिए ही बनाए जाते हैं। मुक्ति के लिए तो, ज्ञानीपुरुष के बिना मुक्ति ही नहीं है। गुरु तो हमें संसार में आगे ले जाते हैं और खुद जैसे हैं वैसे हमें बना देते हैं। उससे आगे का नहीं दे सकते और मुक्ति तो ज्ञानीपुरुष देते हैं। इसलिए