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गुरु-शिष्य
में आए! इसलिए फिर मन में ऐसा लगा कि गुरु बनाने, वह बोझ बेकार है।
प्रश्नकर्ता : 'गुरु की ज़रूरत नहीं है' कहते हैं, वह तो किसी खास स्टेज में पहुँचने के बाद गुरु काम में नहीं आते। उसके बाद तो आप पर आधारित है।
दादाश्री : वह तो कबीरजी ने भी सब कहा है कि : 'कबीर हद का गुरु है, बेहद का गुरु नहीं!'
यानी गुरु की तो ठेठ तक ज़रूरत पड़ेगी। 'बेहद' आते-आते तक तो तेल निकल जाता है।
प्रश्नकर्ता : सांसारिक कामों में गुरु की ज़रूरत है, व्यवहारिक ज्ञान में गुरु की ज़रूरत है। लेकिन खुद अपने को जैसा है वैसा देखने के लिए गुरु की ज़रूरत नहीं है, ऐसा हुआ न?
दादाश्री : संसार में भी गुरु चाहिए और मोक्षमार्ग में भी गुरु चाहिए। वह तो कोई ही व्यक्ति बोलता है कि 'गुरु की ज़रूरत नहीं है।' गुरु के बिना तो चलेगा ही नहीं। गुरु अर्थात् उजाला कहलाता है। ठेठ तक गुरु चाहिए। श्रीमद् राजचंद्र ने कहा है कि बारहवें गुणस्थानक तक गुरु की ज़रूरत पड़ेगी, बारहवें गुणस्थानक यानी भगवान होने तक गुरु की ज़रूरत पड़ेगी।
प्रश्नकर्ता : गुरुओं का विरोध करने के लिए मेरा प्रश्न नहीं है। मैं तो वह समझना चाहता हूँ।
दादाश्री : हाँ, लेकिन गुरु की खास ज़रूरत है इस दुनिया में। मेरे भी अभी तक गुरु हैं न! मैं पूरे जगत् का शिष्य बनकर बैठा हूँ। तो मेरा गुरु कौन? लोग! अर्थात् गुरु की तो ठेठ तक ज़रूरत है।
जो बात सत्य हो, उसे सत्य कहने में हर्ज़ क्या है? 'ज्ञानीपुरुष' तो, गलत होने पर तुरंत ही उसे गलत कह देते हैं। वह फिर चाहे राजा का हो या चाहे जिसका। आपको नहीं मानना हो तो भी मुझे हर्ज नहीं है, लेकिन मैं नहीं चलने दूंगा। मैं तो पूरे वर्ल्ड को फेक्ट कहने आया हूँ। क्योंकि अभी तक