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गुरु-शिष्य
को कुछ नहीं पहुँचता है । वह अच्छे रास्ते खर्च हो, तो उसमें ज़रा-सा भी खेत में गया तो बहुत अधिक उपजेगा । परंतु उसमें उसे क्या लाभ हुआ? बाक़ी, जहाँ लक्ष्मी है वहाँ धर्म नहीं होता । जहाँ पर जितनी लक्ष्मी है, उतना ही वहाँ पर धर्म कच्चा है !
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प्रश्नकर्ता : लक्ष्मी आई इसलिए फिर उसके पीछे ध्यान देना पड़ता है, व्यवस्था करनी पड़ती है ।
दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है । उसकी व्यवस्था के लिए नहीं, लोग कहेंगे कि व्यवस्था तो 'हम कर लेंगे।' परंतु जहाँ पर लक्ष्मी की हाज़िरी है, वहाँ पर धर्म उतना कच्चा रहता है ! क्योंकि सबसे बड़ी माया, लक्ष्मी और विषय - विकार! ये दोनों सबसे बड़ी माया है । जहाँ ये माया है वहाँ भगवान नहीं होते, और भगवान हों, वहाँ माया नहीं होती है!
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और पैसा घुसा तो फिर कितना घुसेगा उसका क्या ठिकाना? यहाँ कोई नियम है? इसलिए पैसा बिल्कुल जड़मूल से नहीं होना चाहिए । शुद्ध होकर आओ! मैला मत करना, धर्म में !
धर्म की क्या दशा है आज !
फिर फ़ीस रखते हैं सभी, जैसे नाटक हो वैसे! नाटक में फ़ीस रखते हैं, वैसे फ़ीस रखते हैं । उनमें पाँच प्रतिशत अच्छे भी होते हैं । बाक़ी तो सोने का भाव बढ़ गया, वैसे 'इनके' भी भाव बढ़ जाते हैं न ! इसलिए मुझे पुस्तक में लिखना पड़ा कि जहाँ पैसों का लेन-देन है, वहाँ भगवान नहीं हैं और धर्म भी नहीं है। जहाँ पैसों का लेन-देन नहीं है, व्यापारी पहलू ही नहीं है, वहाँ भगवान हैं! पैसा, लेन-देन वह व्यापारी पहलू कहलाता है।
सभी तरफ पैसे, जहाँ जाओ वहाँ पैसे ! सब तरफ फ़ीस, फ़ीस और फ़ीस है! हाँ, तब गरीबों ने क्या गुनाह किया बेचारों ने ? फ़ीस रखो तो गरीबों के लिए ऐसा कहो कि, 'भाई, गरीब के पास से चार आने लूँगा, बहुत हो गया।' तब तो गरीब भी जा सकेगा वहाँ पर । यह तो धनवान ही लाभ लेते हैं। बाक़ी, जहाँ फ़ीस हो, वहाँ कुछ भी धर्म ही नहीं है । हमारे यहाँ एक पैसा