________________
११४
गुरु-शिष्य
ये 'गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु महेश्वरा' कहते हैं, वे तो गुरु ही नहीं हैं। ये तो 'गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु...' के नाम से उनका खुद का लाभ उठाने फिरते हैं। इससे लोग फिर पूजते हैं उन्हें! परंतु वास्तव में तो, यह सद्गुरु की बात है। सद्गुरु अर्थात् ज्ञानीपुरुष के लिए यह बात है। जो सत् को जानते हैं, सत् के जानकार हैं, वैसे गुरु की बात है। उनके बदले इसे ये गुरु, रास्ते पर जानेवाले गुरु पकड़ बैठे हैं। ___बाक़ी, जो गुरु बन बैठे हैं, उन्हें तो कह देना कि, 'भाईसाहब, मुझे आपको गुरु नहीं बनाना है। मैं व्यापारी गुरु बनाने नहीं आया हूँ। मैं तो जिन्हें गुरु नहीं बनना है, उन्हें गुरु बनाने आया हूँ।'
गुरु का बेटा गुरु? प्रश्नकर्ता : पहले के ज़माने में जो गुरु परंपरा थी, कि गुरु शिष्य को सिखाते थे, फिर वापिस शिष्य गुरु बनकर उनके शिष्यों को सिखाते थे....
दादाश्री : वह परंपरा सच्ची थी। परंतु अभी तो परंपरा रही नहीं न! अब तो गद्दीपति बन बैठे हैं। गुरु का बेटा गुरु बन जाए, वैसा कैसे माना जा सकता है! गद्दियों की स्थापना की, वह दुरुपयोग किया।
प्रश्नकर्ता : धर्म की व्यवस्था के बदले समाज व्यवस्था बन गई!
दादाश्री : हाँ, समाज व्यवस्था बन गई। धर्म तो कहाँ रहा, धर्म तो धर्म के स्थान पर रहा! फिर कलियुग घेर लेता है न! एक-दो पुरुष अच्छे होते हैं, परंतु फिर उनके पीछे गद्दीपति और वह सब शुरू हो जाता है, जहाँ-तहाँ गद्दीपति न! गद्दीपति शोभा नहीं देते कभी भी। धर्म में गद्दी नहीं होती। दूसरी सब जगह पर, सभी कलाओं में, व्यापार में, गद्दी होती है, परंतु इस धर्म में गद्दी नहीं होती। इसमें तो जिनके पास आत्मा का हो, वैसे आत्मज्ञानी होने चाहिए!
प्रश्नकर्ता : पहले गद्दियाँ नहीं थी, तो ये गद्दियाँ निकलीं किस प्रकार
से?