________________
गुरु-शिष्य
दादाश्री : परंतु श्रद्धा उपजे वैसा स्थान चाहिए न? तब तक तो श्रद्धा हितकारी जगह पर या अहितकारी जगह पर बैठती है, वह देख लो। हमें हितकारी पर श्रद्धा बैठती हो, दृढ़ होती हो तो हर्ज नहीं है। बाक़ी अहितकारी पर श्रद्धा नहीं बैठनी चाहिए।
प्रश्नकर्ता : मुझे किसी भी प्रकार से, किसी भी धर्म या व्यक्ति में श्रद्धा उत्पन्न नहीं होती। इसका कारण क्या है? उच्च कक्षा के कहे जानेवाले संतों के सत्संग में भी शांति अनुभव नहीं होती, उसमें दोष किसका?
दादाश्री : जहाँ सच्चा सोना मानकर हम गए, वहाँ रॉल्ड गोल्ड निकला, तब फिर श्रद्धा ही नहीं बैठती न! फिर दूध का जला हुआ व्यक्ति, छाछ भी फूंककर पीता है!
प्रश्नकर्ता : श्रद्धा तो गुरु पर रखनी चाहिए न?
दादाश्री : नहीं, श्रद्धा रखनी पड़े वैसा नहीं है, श्रद्धा आनी चाहिए! श्रद्धा रखनी पड़े, वह गुनाह है। श्रद्धा हमें आनी चाहिए।
प्रश्नकर्ता : गुरु पर श्रद्धा रखें, अधिक श्रद्धा रखें, तो उस श्रद्धा से हमें अधिक प्राप्ति होगी न?
दादाश्री : परन्तु ऐसा है न, रखी हुई श्रद्धा नहीं चलेगी। श्रद्धा हममें आनी चाहिए।
प्रश्नकर्ता : अधिकतर लोगों के पास जाएँ तब पहले क्या कहते हैं कि 'आप श्रद्धा रखो।'
दादाश्री : तब मैं श्रद्धा रखने को मना करता हूँ। श्रद्धा रखना ही मत मुझ पर बिल्कुल भी। श्रद्धा किसी भी जगह पर नहीं रखनी है। श्रद्धा तो सिर्फ बस में बैठते समय रखना, गाड़ी में बैठते समय रखना। परंतु इन मनुष्यों पर अधिक श्रद्धा मत रखना। श्रद्धा तो हमें आनी चाहिए।
प्रश्नकर्ता : क्यों? दादाश्री : पीछे गोंद हो, तब टिकट चिपकेगी न? बिना गोंद के चिपकेगी