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संपादकीय
पाँच ही विषय हैं, फिर भी उनकी पकड़ न जाने कैसी अवगाढ़ है कि अनंतकाल से उसका अंत ही नहीं आ रहा ? ! क्योंकि प्रत्येक विषय के फिर अनंतानंत पर्याय हैं ! उस प्रत्येक पर्याय में से मुक्त होगा, तब विषय में से छूटेगा और मोक्ष होगा। लेकिन विषय 'आत्मज्ञान' के बिना सर्वांशरूप से निर्मूल होगा ही कैसे? और आत्मज्ञान की प्राप्ति कहाँ सर्वकाल सुलभ होती है? फिर अनंत काल बीत जाए फिर भी इसका 'एन्ड' आएगा क्या ? ! वह तो जब प्रत्यक्ष ‘ज्ञानीपुरुष' से भेंट हो जाए, तब उनसे संप्राप्त आत्मज्ञान से ही इस विषय के झंझट का अंत आएगा !
जिस विषय को जीतने के लिए प्राचीनकाल के ऋषि-मुनि घोर तपश्चर्या करते थे, फिर भी जो दुष्कर होता था, वही ब्रह्मचर्य आज इस काल में अद्भुत ‘अक्रमविज्ञान' द्वारा शीघ्रता से सहज साध्य हो गया है! यह ‘अक्रमविज्ञान' एक ऐसा अद्भुत विज्ञान है कि जो मोक्षमार्ग में विवाहितों को भी एडमिट् करता है । इतना ही नहीं लेकिन उस मार्ग में ठेठ पूर्णाहुति तक पहुँचाता है ! हाँ, विवाहित लोगों को यह विज्ञान मात्र 'जैसा है वैसा' समझ लेना है !
तमाम शास्त्रों ने, तमाम ज्ञानीपुरुषों ने मोक्षमार्ग में आगे बढ़ने के लिए, आत्म स्वरूप की अनुभूति के द्वार तक पहुँचने के लिए तथा जगत् के सर्व बंधनों से मुक्त होने के लिए 'सर्व संग परित्याग' की अनिवार्यता के बारे में कहा है, लेकिन इस 'अक्रमविज्ञान' ने एक नया ही मार्ग बताया है कि स्त्री का संग-प्रसंग होने के बावजूद भी असंग आत्मानुभव किया जा सके, ऐसा है ! इस 'अक्रमविज्ञान' की गहरी समझ के माध्यम से विवाहित भी पुरुषार्थ और पराक्रम द्वारा मोक्षमार्ग में जागृति की पराकाष्ठा तक पहुँच सकें, ऐसा है ! विरले ही यह सिद्धि सिद्ध कर सकें, ऐसा होने के बावजूद भी इस काल में कितने ही विवाहित लोग प्रकट 'ज्ञानीपुरुष' परम पूज्य दादाश्री के सत्संग और सानिध्य में 'समझ' प्राप्त करके आत्मा के स्पष्टवेदन की अनुभूति प्राप्त करने के पंथ पर प्रयाण कर रहे हैं।
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