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३. विषय सुख में दावे अनंत सारा जगत् विषय में सुख मानता है। सिर्फ ब्रह्मचारी और समकिति देवगण ही विषय में नहीं मानते।
खाने-पीने में और अन्य किसी में सुख खोजे तो उसे चलाया जा सकता है, लेकिन विषय में तो निरी गंदगी ही है, उसमें क्या सुख है? सिर्फ इतना ही छोड़ने जैसा है, वर्ना वह 'फाइल' के रूप में मोक्ष में जाने में रुकावट डालेगा।
विषय, वह जीवंत परिग्रह है। फिर मिश्र चेतन दावा करता है। बैर भी बाँधता है। इसलिए सावधान, पूरी जिंदगी उसका गुलाम होकर रहना पड़ेगा। दो मन एकाकार हो ही नहीं सकते। इसलिए आमने-सामने दावे, अपेक्षाएँ आदि शुरू हो ही जाते हैं। एक ही बार जिसके साथ विषय भोग किया हो, उसके पेट से जन्म लेना पड़ता है। क्या जलेबी दावा करेगी, यदि उसे खाना बंद कर दें तो?
राग से विषय भोगता है और जब उसका परिणाम आता है तब द्वेष आकर खड़ा रहता है। राग से जो लपेटा गया, वह द्वेष से खुलता है और निरा बैर बाँधता है। अत: जिस व्यक्ति के साथ मन बंध गया हो, उसके खूब प्रतिक्रमण करो और उसीके शुद्धात्मा से ब्रह्मचर्य की शक्ति माँगते रहना कि विषय से मुक्त कीजिए।
विषय से बैर बँधता है और जन्मोजन्म तक बढ़ता ही रहता है। दूसरे बीज पडते ही रहते हैं, पडते ही रहते हैं। उन्हें भूनने की चाबी जान जाएँ, तभी छूट पाएँगे। बीज कैसे भूने जाएँ? प्रतिक्रमण द्वारा, विषय का जो जो सुख लिया, वह लोन पर लिया जाता है उसे 'रीपे' करना ही पड़ता है और 'रीपे' करते समय दु:ख भुगतना ही पड़ता है। अतः आत्मा में से ही सुख लेने जैसा है, ऐसी बिलीफ तो फिट कर लो।
४. विषय भोग, नहीं है निकाली अक्रमज्ञान प्राप्त करने के बाद एकावतारी होना हो तो भीतर सतर्क
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