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विषय भूख की भयानकता
ही प्रतिक्रमण करना होगा । प्रतिक्रमण करने से सामनेवाले को भाव उत्पन्न नहीं होता।
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स्त्री को छूने का अधिकार किसी को भी नहीं है। क्योंकि स्त्री को छूए तो परमाणु का असर हुए बगैर रहेगा नहीं । परस्त्री को ज़रा सा भी छू लिया हो, तो घंटेभर धोना पड़ेगा। सिर्फ 'ज्ञानीपुरुष' के ही चरणों को छूकर स्त्रियाँ विधि कर सकती है। 'ज्ञानीपुरुष' तो विषय के सारे बीज उखाड़कर फेंक चुके होते हैं । उनमें विषय का बीज ही नहीं होता । छूने का अधिकार किसे है? नवाँ गुणस्थानक पार कर दिया हो उसे । क्योंकि उन्हें तो विषय संबंधी विचार तक नहीं आते न ! वे विचार ही बंद न ! ऐसा होने के बाद तो उन्हें दिमाग़ में ऊर्ध्व विचार ही आते हैं, सारी शक्तियों का ऊर्ध्वकरण ही होता है ।
यह ज्ञान होने के बाद हमें कभी-भी विषय का विचार ही नहीं आया। जिन्हें विषय का विचार तक नहीं आए, जिनका मनोबल ज़बरदस्त ज्ञानपूर्वक हो गया हो, फिर उन्हें कोई हर्ज नहीं है । इसीलिए तो स्त्रियाँ हमारे चरणों को छूकर विधि कर सकती हैं न ! लेकिन अन्य किसी को भी स्त्रियों को छूने की छूट नहीं है और स्त्रियों को भी किसी को छूने की छूट नहीं है, छू ही नहीं सकते । अन्यों को तो स्त्री के छूने से पहले ही विषय का विचार खड़ा हो जाता है । हमें तो 'थ्री विज़न' से एक ही सेकन्ड में सब आरपार दिखाई देता है । हमारा दर्शन इतना उच्च है कि फिर रोग उत्पन्न ही कैसे हो ?
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और हमें पुद्गल के प्रति राग ही नहीं है न ! मेरे ही पुद्गल के प्रति मुझे राग नहीं है। पुद्गल से मैं सर्वथा जुदा ही रहता हूँ। खुद के पुद्गल के प्रति जिसे राग होता है, उसे दूसरों के पुद्गल के प्रति राग होता है। अनंत जन्मों से यही का यही भोगा है फिर भी नहीं छूटता । यह आश्चर्य ही है न! जब कितने ही जन्मों से विषय सुख का विरोधी हो चुका हो, विषय सुख के बारे में आवरण रहित दृष्टि से बहुत ही सोचा हो, जब ज़बरदस्त वैराग्य उत्पन्न हो चुका हो, तब विषय छूट सकता है। वैराग्य कब उत्पन्न होता है? उसे अंदर जैसा है वैसा दिखाई दे, तब ।