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अबला बना देती है। सिर्फ विषय के लिए स्त्री के सामने अबला हो जाना, उसके बजाय विषय को ही दूर न कर दें? उसमें फिर अहंकार करके भी उस विषय में से छूट जाना चाहिए। उस अहंकार से भले ही कर्मबंधन होता हो, लेकिन वह सभी मुसीबतों से छुड़वानेवाला होने के कारण परभव में ज़बरदस्त वैभव दिलवानेवाले पुण्यकर्म के रूप में फलित होता है। ऐसा अहंकार किया हो तो उस अहंकार या उसके परिणाम से छूटा जा सकता है, लेकिन विषयमोह या उसके परिणामों से छूटना अति-अति दुष्कर है। इसलिए एकबार अहंकार कर लेना चाहिए कि, 'चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन विषय-विष को तो छूऊँगा ही नहीं' तब भी शायद उसका हल निकल जाए। अथवा तो जिसे 'विषय' की परवशता से छूटना है, वह अपने हृदय की उलझनें 'ज्ञानीपुरुष' से कहकर खाली कर दे, तो 'ज्ञानीपुरुष' स्वपर हितकारी मार्गदर्शन दे कर आत्यंतिक कल्याण करवाते हैं।
विषय का जन्म आकर्षण में से होता है और बाद में नियम से आकर्षण विकर्षण में परिणमित होता है। और उसमें से फिर बैर बंधता है। बैर की नींव पर यह संसार खड़ा है, टिका हुआ है। उसमें भी यह विषय का बैर अत्यंत ज़हरीला होता है, अनंतकाल खराब कर दे उतना भयंकर है।
७. विषय, वह पाशवता ही पुराने जमाने में, आज से सत्तर-अस्सी साल पहले सौ में से पाँचसात लोग विषय में बिगड़ जाते थे। अणहक्क के विषय के लिए किसी विधवा को खोज निकालते, दूसरी नहीं। पंद्रह साल तक तो सभी लड़कियों के प्रति बहन जैसी दृष्टि ही रखते थे। दस-ग्यारह साल के होने तक तो गलियों में दिगंबर रहकर ही घूमते थे। माँ-बाप की किसी भी प्रकार की सीक्रेसी, तीन साल के बच्चे ने भी कभी नहीं देखी होती थी। बाप ऊपरी मंजिल पर और माँ नीचे सोती थीं। एक बैडरूम या डबलबेड जैसा कुछ था ही नहीं तब। तब तो कहावत थी कि 'जो मर्द सारी रात औरत के साथ सो जाए, वह अगले जन्म में स्त्री बन जाता है!' उसके पर्याय असर डालते हैं!
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