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ब्रह्मचर्य का मूल्य, स्पष्टवेदन आत्मसुख
जबकि स्त्री विषय में तो इतना अधिक तन्मयाकार हो जाता है, यानी अंदर इतना अधिक खो जाता है कि उसे हिलाने पर भी पता नहीं चलता ।
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बाकी वास्तविक ब्रह्मचर्य अर्थात् आत्मचर्या में ही अपना उपयोग और पुद्गल अर्थात् विषयचर्या में उपयोग नहीं । यानी सिर्फ आत्मरमणता, पुद्गल रमणता नहीं। अन्य पुद्गल रमणता उतनी बाधक नहीं है लेकिन विषय से संबंधित पुद्गल रमणता तो ठेठ आत्मा का अनुभव भी नहीं करने देती।
प्रश्नकर्ता : फिलॉसफर ऐसा कहते हैं कि सेक्स को दबाने से विकृत हो जाते हैं। स्वास्थ्य के लिए सेक्स ज़रूरी है।
दादाश्री : उनकी बात सही है, लेकिन अज्ञानी को सेक्स की ज़रूरत है वर्ना शरीर को आघात लगेगा। जो ब्रह्मचर्य की बात को समझते हैं उन्हें सेक्स की ज़रूरत नहीं है, और अज्ञानी व्यक्ति को यदि ब्रह्मचर्य के लिए बाध्य किया जाए तो उसका शरीर टूट जाएगा, खत्म हो जाएगा।
प्रश्नकर्ता : लेकिन जिसे समकित प्राप्त नहीं हुआ है, यदि वह ब्रह्मचर्य का महत्व समझे तो उसे भी परेशानी नहीं आएगी न ?
दादाश्री : ब्रह्मचर्य का महत्व वह ज्ञानी के सिवा या शास्त्र के आधार के सिवा समझ ही नहीं सकता ।
प्रश्नकर्ता : तो ये सभी साधु जो ब्रह्मचर्य पालन करते हैं, वह ?
दादाश्री : वहाँ उन्हें शास्त्र का आधार है । कोई भी आधार होना चाहिए। इसलिए ये बाहरवाले लोग यदि ऐसा करने जाएँ..., दबाने से तो विकृत हो जाएगा। ब्रह्मचर्य हितकारी है - वह कैसे, किस दृष्टि से, वह पूर्णरूप से समझ लेना पड़ेगा, उसका अर्थ यह नहीं है कि उसे दबाना है। वर्ना स्वास्थ्य बिगड़ जाएगा । और कुछ नहीं लेकिन स्वास्थ्य पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।
प्रश्नकर्ता : सेक्स नहीं दबाना चाहिए वर्ना रोग हो जाता है।
दादाश्री : रोग हो जाता है, यह बात सही है। उसे ऐसे नहीं दबाना