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विषय बंद, वहाँ लड़ाई-झगड़े बंद
और फिर स्वमान जैसा कुछ भी नहीं । पत्नी पति को धौल लगाए तो पति पत्नी को धौल लगाता है । फिर पति हमसे आकर कह जाता है कि 'मेरी पत्नी मुझे मारती है!' तब मैं कहता भी हूँ कि, 'हें! तुझे तो ऐसी मिली ? फिर तो तेरा कल्याण हो जाएगा ! '
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प्रश्नकर्ता : यह सब फज़ीता सुनते ही यों हैरान हो जाते हैं कि ये लोग कैसे जीते होंगे ?
दादाश्री : फिर भी जी रहे हैं न ! तूने दुनिया देखी न! और जीएँ नहीं तो क्या करें? मर थोड़े ही सकते हैं ?
प्रश्नकर्ता : लेकिन हमें यह सब देखकर कँपकँपी छूट जाती है। फिर ऐसा होता है कि हर रोज़ ऐसे झगड़े चलते रहते हैं फिर भी पतिपत्नी को इसका हल लाने का मन नहीं होता, यह भी आश्चर्य है न ?
दादाश्री : ये तो, कई बरसों से, जब से शादी की, तभी से ऐसा ही चल रहा है। शादी की तभी से एक ओर झगड़े भी जारी हैं और एक ओर विषय भी ज़ारी है ! इसीलिए तो हमने कहा कि आप दोनों ब्रह्मचर्यव्रत ले लो, तो लाइफ उत्तम हो जाएगी । अतः ये सब लड़ाई-झगड़े वे अपनी गरज़ के मारे करते हैं। पत्नी जानती है कि ये आख़िर कहाँ जाएँगे ? पति भी जानता है कि यह कहाँ जाएगी? ऐसे आमने-सामने गरज़ की वजह से चल रहा है।
राग-द्वेष की बुनियाद पर है विषय
प्रश्नकर्ता : आपने कहा न कि राग-द्वेष का मूल स्थान ही यह है ?
दादाश्री : हाँ, जगत् में हर चीज़ का मूल यहीं से शुरू हुआ है ! और शादी करने के बाद पति मारता है और उसके मारने से पहले पत्नी भी मारती है! इससे दोनों ज़ोरदार और मज़बूत बन जाते हैं !
प्रश्नकर्ता : सबके सामने ऐसी फ़ज़ीहत हो, तो घर से बाहर हम क्या मुँह लेकर निकल सकेंगे ?