________________
है, उस 'वैज्ञानिक अक्रम मार्ग' का ब्रह्मचर्य संबंधी अद्भुत रहस्य इस ग्रंथ में विस्फोटित हुआ है ।
इस संसार के मूल को जड़ - मूल से उखाड़नेवाला, आत्मा की अनंत
समाधि की रमणता करानेवाला, निर्ग्रथ वीतराग दशा की प्राप्ति करानेवाला, वीतरागों द्वारा, खुद प्राप्त करके अन्यों को बोधित किया हुआ, यह अखंड त्रियोगी शुद्ध ब्रह्मचर्य, निश्चित रूप से मोक्ष की प्राप्ति करवानेवाला ही है। ऐसे दूषमकाल में 'अक्रमविज्ञान' की उपलब्धि होने के बाद जिसने आजीवन मन-वचन-काया से शुद्ध ब्रह्मचर्य सँभाल लिया, उसे अवश्य ही एकावतारी पद प्राप्त हो सकता है, ऐसा है !
I
अंत में, ऐसे दूषमकाल में कि जहाँ समग्र जगत् में वातावरण ही विषयाग्निवाला फैल गया है, ऐसे संयोगों में ब्रह्मचर्य संबंधी 'प्रकट विज्ञान' को स्पर्श करके निकली हुई ज्ञानीपुरुष की अद्भुत वाणी को संकलित करके विषय मोह में से छूटकर, ब्रह्मचर्य की साधना में रहकर, अखंड शुद्ध ब्रह्मचर्य के पालन हेतु, सुज्ञ पाठक के हाथ में यह 'समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य' ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत किया गया है । विषय के जोखिमों से छूटने के लिए, इसके बावजूद भी गृहस्थी में रहकर सारा व्यवहार निर्भयता से पूरा करने के लिए, और मोक्षमार्ग निरंतराय रूप से बर्त सके, इसके लिए 'जैसी है वैसी' वास्तविकता को प्रस्तुत करते हुए, सोने की कटार रूपी कही गई इस समझ को थोड़ी भी विपरीतता की ओर न ले जाकर, सम्यक् प्रकार से ही उपयोग किया जाए, ऐसी प्रत्येक सुज्ञ पाठक से अत्यंत भावपूर्ण विनती! 'ज्ञानीपुरुष' की तात्विक - निश्चय - वाणी तो त्रिकाल सत्य, अविरोधाभासी, सैद्धांतिक ही होती है, जबकि व्यवहार वाणी निमित्ताधीन, संयोगाधीन और द्रव्य - क्षेत्र - काल और भाव के अधीन होती है, इस कारण से इस वाणी में सुज्ञ पाठक को भासित भूल कहीं भी क्षति के रूप में दिखे, तो वह संकलन की भूल हो सकती है, लेकिन उसे क्षम्य मानकर मोक्षमार्ग पर यथायोग्य पूर्णाहुति हेतु इस महाग्रंथ का उपयोगपूर्वक आराधन करें, यही अभ्यर्थना !
- डॉ नीरूबहन अमीन के जय सच्चिदानंद
11