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अणहक्क के विषयभोग, नर्क का कारण
भी नहीं। मनुष्य का दोष नहीं है, यह कर्म ही भरमाता है बेचारों को । लेकिन यदि उसमें शंका रखे न तो वह मर जाएगा, बिना वजह ही । मोक्ष में जानेवालों को
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देहाध्यास छूटे तो समझना कि मोक्ष में जाने की तैयारी हुई। देहाध्यास यानी देह में आत्मबुद्धि ! वह सब देहाध्यास कहलाता है । कोई गाली दे, मारे, अपनी 'वाइफ' को अपने सामने ही उठा ले जाए, फिर भी अंदर राग-द्वेष नहीं हों, तो समझना कि वीतराग का मार्ग समझ में आ गया है! लोग तो फिर खुद की कमज़ोरी की वजह से उठा ले जाने देते हैं न ! सामनेवाला मज़बूत हो तो 'वाइफ' को ले जाने देते हैं न?
अतः यह कुछ भी अपना है ही नहीं । यह सब पराया है। अतः यदि व्यवहार में रहना हो तो व्यवहार में मज़बूत बन और मोक्ष में जाना हो तो मोक्ष के लायक बन ! जहाँ यह देह भी खुद की नहीं है, वहाँ स्त्री खुद की कैसे हो पाएगी ? बेटी खुद की कैसे हो पाएगी ? यानी आपको तो हर तरह से सोच लेना चाहिए कि स्त्री को उठा ले जाए तो क्या करना चाहिए ?
जो होनेवाला है, वह बदल नहीं सकता, 'व्यवस्थित' ऐसा है। अतः चौंकना मत, इसीलिए ऐसा कहा है कि 'व्यवस्थित' है। जब तक नहीं देखे, तब तक कहेंगे ‘मेरी पत्नी' और देखा तो फिर फड़फड़ाहट! अरे! पहले से ऐसा ही था। इसमें नया खोजना ही मत ।
प्रश्नकर्ता : लेकिन 'दादाजी' ने तो बहुत ढील दे दी है।
दादाश्री : मेरा कहना यह है कि दूषमकाल में हम झूठी आशा रखें, उसका कोई अर्थ ही नहीं है न! और सरकार ने भी डाइवोर्स का कानून निकाल दिया है। सरकार पहले से ही जानती थी कि ऐसा होनेवाला है। अतः कानून पहले बनता है । यानी हमेशा दवाई का पौधा पहले उगता है, उसके बाद रोग उत्पन्न होता है । उसी तरह कानून पहले निकलता है, उसके बाद यहाँ लोगों में ऐसी घटनाएँ घटती हैं!