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विश्लेषण, विषय के स्वरूप का (खं-1-1)
न हो तो अंत में माँ-बाप भी उठाकर उस कुएँ में डाल देते हैं। वे लोग नहीं डालेंगे तो मामा उठाकर डाल देगा। ऐसा है यह फँसाववाला जगत्!
शादी तो सचमुच में बंधन है। भैंस को डिब्बे में भरने जैसी दशा हो जाती है। उस फँसाव में नहीं फँसें, वही उत्तम है, फँस गए हों तो फिर निकल जाएँ तो और भी उत्तम और न हो तो अंत में फल चखने के बाद निकल जाना चाहिए! शादी से पहले, दस दिन पहले लड़की अगर गाड़ी में मिल जाए तो वह धक्का मारता है। उसी को फिर खुद ने पसंद किया। लो, वह वाइफ बन गई! किसकी बेटी, किसका बेटा, कुछ लेना-देना नहीं है! वाइफ मर जाए तो फिर रोता है। क्यों रोता है? वह कहाँ अपनी रिश्तेदार थी? माँ का रिश्ता सचमुच में रिश्ता कहलाता है, भाई का रिश्ता, रिश्ता कहलाता है, पिता जी का रिश्ता, रिश्ता कहलाता है, लेकिन वाइफ का कौन सा रिश्ता है? पराए घर की बेटी, उसे देखने गया था तब तो यों घूमो, यों घूमो कर रहा था, मर्जी में आए तो सैंक्शन करता है। घर पर लाता है। उसके बाद यदि मेल न खाए तो फिर कहेगा कि 'डाइवोर्स लो।'
एक भाई ने मुझसे कहा कि 'मेरी वाइफ के बिना मुझे ऑफिस में अच्छा नहीं लगता।' अरे, एक बार हाथ में पीप हो जाए तो तू चाटेगा? नहीं तो क्या देखकर स्त्री पर मोह कर रहा है? पूरा शरीर पीप से ही भरा है। यह पोटली किसकी है, इसका विचार नहीं आता? भले आचार नहीं छुटे लेकिन क्या ऐसा विचार नहीं आना चाहिए? जितना प्रेम मनुष्य को अपनी स्त्री पर होता है, उससे अधिक प्रेम तो सूअर को सूअरनी पर है। यह क्या कोई प्रेम कहलाता होगा? यह तो पाशवता है निरी! प्रेम तो किसे कहते हैं, कि जो बढ़े नहीं, घटे नहीं, उसे प्रेम कहते हैं। यह सब तो आसक्ति है। बढ़ गई तो आसक्ति और कम हो गई, वह विकर्षण शक्ति। यदि अच्छे इयरिंग लाकर दिए, हीरे के टोप्स