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समर्पण
विकराल विषयाग्नि में दिन-रात जलते; अरे रे! अवदशा फिर भी उसी में विचरते !
संसार के परिभ्रमण को सहर्ष स्वीकारते; और परिणाम स्वरूप दुःख अनंत भुगतते !
दावा क़रारी, मिश्रचेतन-संग चुकाते; अनंत आत्मसुख को विषय भोग से विमुखते!
विषय अज्ञान टले, ज्ञानी से 'ज्ञान' मिलते ही; 'दृष्टि' निर्मलता की कुंजियाँ मिलते ही !
'मोक्षगामी' के लिए - ब्रह्मचारी या विवाहित; शील की समझ से मोक्ष पद करवाते प्राप्त !
अहो! निर्ग्रथज्ञानी की वाणी की अद्भुतता; अनुभवी वचन निर्ग्रथ पद तक पहुँचाता !
मोक्ष पथ पर विचरते 'शील पद' की भावना करते; वीतराग चारित्र के बीज अंकुर विकसित करते !
अहो ! ब्रह्मचर्य की साधना के लिए निकली; आंतर बाह्य उलझनों के सत् हल बताती !
ज्ञान वाणी का यह संकलन, 'समझ ब्रह्मचर्य' की है देता; आत्मकल्याणार्थे ‘यह', महाग्रंथ जगचरण समर्पिता !