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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
पूरा जगत् फँसाव है। फँसने के बाद तो चारा ही नहीं है। कितने ही जन्म खत्म हो जाएँ, लेकिन फिर भी उसका 'एन्ड' ही नहीं है ! शादी किए बिना तो चलेगा नहीं और शादी करना तो समझे कि मिलेगा, लेकिन ये दूसरे लफड़े तो खड़े न करें। लफड़े में बहुत दु:ख है। शादी करने में इतना दुःख नहीं है। शादी तो एक तरह का व्यापार शुरू किया कहलाएगा। कुछ स्त्रियाँ नहीं कहतीं कि व्यापार शुरू किया ? वह व्यापार फिर पूरा हो जाता है। यानी एक जगह तो शादी करनी ही होती है, हिसाब लिखा हुआ ही होता है, लेकिन दूसरे लफड़ों का अंत नहीं आता ।
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यह जो दादाजी ने बात बताई, वह तुम भूल जाओगी क्या ? घर जाकर भूल नहीं जाओगी न ?
प्रश्नकर्ता : अंदर टेप करने का निश्चय किया है।
दादाश्री : हाँ, ठीक है । हम तो वहाँ तक का सब दिखा देते हैं कि तुम्हें भीतर ठोकर नहीं लगे। फिर अगर तुम जानबूझकर हमारे शब्दों को लांघो तो ठोकर लगेगी, फिर तो यह ज्ञान भी चला जाएगा। यह ज्ञान ठेठ मोक्ष में ले जाए, ऐसा है। इस संसार में कहीं सुख तो होता होगा ? सुख तो यह जो आत्मा की बात करते हैं, उसमें आता है न ? उसमें सुख है।
वह
शादी किए बिना तो चारा ही नहीं है न ? ऐसा तुम समझती हो या नहीं? तुम्हारे माँ-बाप और सभी मिलकर शादी करवा ही देते हैं। तुम्हारी इच्छा नहीं हो फिर भी शादी करवा देते हैं । तुम्हारी इच्छा क्यों नहीं होती ? क्योंकि आपने एक सेम्पल देखा हो, सेम्पल इससे ज़्यादा सुंदर दिखता हो इसलिए वह अच्छा लगता और यह अच्छा नहीं लगता । अरे, वह भी सेम्पल है और यह भी सेम्पल है। दोनों को छीलेंगे तो अंदर से क्या निकलेगा ? लेकिन उसका तो उस सेम्पल में ही जीव रहता है कि 'वह कितना सुंदर था और मेरे फादर यह लाए, वह कितना बदसूरत ! '