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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : लेकिन यह तो पूर्वापर संबंध के बिना दिखता है न?
दादाश्री : पूर्वापर संबंध है ही।
प्रश्नकर्ता : नहीं, नहीं, दिन भर में या फिर जिंदगीभर में कुछ नहीं किया हो तो वह पूर्वापर संबंध के बिना इस सपने में हो सकता है?
दादाश्री : हाँ, आज के संबंध के बिना हो सकता है। लेकिन उस संस्कार का उदय आया कि तुरंत दिखाई देता है। कोई साधु हो फिर भी उन्हें सपने में रनिवास आता है। अरे, त्याग किया, बीवी को छोड़ा, फिर भी रानी के सपने आते हैं ?! क्योंकि जो पहले के संस्कार हैं, वही आते हैं।
प्रश्नकर्ता : क्या ऐसा नहीं है कि इस जन्म की अतृप्त वासना से वे सपने आते हैं?
दादाश्री : नहीं, नहीं। अगर इस जन्म की अतृप्त वासना हो न तो वह जहाँ-तहाँ मुँह मारता रहेगा। जो भूखा इंसान होता है न, वह जहाँ कहीं भी हलवाई की दुकान दिखाई दे, तो वहीं ताकता रहता है। मतलब अगर हलवाई की दुकान की ओर ताकता रहे तो लोग समझ जाते हैं कि यह भूखा है। इंसान इन सारी औरतों को देखे या गायों-भैंसों को देखे और वहाँ पर भी ताकता रहे तो क्या हम नहीं समझ जाएँगे कि इसे कुछ अतृप्त वासनाएँ हैं?
प्रश्नकर्ता : लेकिन उसकी वृत्तियों को हम कैसे बंद कर सकते हैं?
दादाश्री : उसमें तो हमसे कुछ नहीं हो सकेगा। वह तो जब खुद सीधा होगा तभी हो सकेगा।
प्रश्नकर्ता : तो उसकी वृत्तियाँ निकालने का रास्ता क्या है? सत्संग?