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'विषय' के सामने विज्ञान से जागृति (खं-2-१५)
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देख सकता है, जलेबी खाता भी है और जलेबी खानेवाले को भी देखता है। जलेबी कैसे चबाता है, उस पर खुद हँसता भी है कि 'ओहोहो! क्या चंद्रेशभाई, क्या टेस्ट से जलेबी चबाने लगे हो आप तो!'
प्रश्नकर्ता : हम किसी जगह पर बैठे हों और वहीं पास में कोई स्त्री आ जाए, और हमें स्पंदन खड़े होने लगें, तो उन्हें 'देखेंगे' तो चलेगा या प्रतिक्रमण करना पड़ेगा?
दादाश्री : प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। 'देखना' उसे कहते हैं कि जब वह 'देख रहा' हो तो हम चंद्रेश से कहेंगे, 'ओहोहो चंद्रेशभाई! आप तो स्त्रियों को भी देखते हो, अब तो रौब में आ गए लगते हो।' उसे 'देखना' कहेंगे। आँखों से जो देखते हैं, वह तो इस दुनिया के सभी लोग देखते ही है न! आँखों से देखा हुआ इन्द्रिय ज्ञान कहलाता है।
प्रश्नकर्ता : यह तो अंदर स्पंदन उत्पन्न होते हैं, उन्हें देखना है कि ये स्पंदन उत्पन्न हुए। ऐसा देखने से जाएगा!
दादाश्री : 'देखना'। 'देखने में', हम जो कहते हैं, वह अलग कह रहे हैं। हम तो, 'यह क्या कर रहा है, उसे हम 'जानते' हैं। मैं तो कहता हूँ कि 'अंबालालभाई, आप तो मज़े से खाना खाने लगे न!'
प्रश्नकर्ता : इस तरह कहने को 'देखना' कहते हैं, आप ऐसा कहना चाहते हैं? यानी पूरी ‘देखने' की जो प्रक्रिया है, वह इस तरह बातचीत के द्वारा स्पष्ट रूप से रह सकती है।
दादाश्री : हाँ। यानी तुम सब यह जो 'देखते' हो, उसे 'देखना' नहीं कह सकते। वह तुम्हारी भाषा में तुम्हारी होशियारी से करने जाओगे न, तो बल्कि मार खा जाओगे। हम से पूछना कि हमारी होशियारी ऐसी है, क्या वह ठीक है?
प्रश्नकर्ता : इसमें ऐसा होता है कि विषय का विचार आता