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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
न, तो खुद तो गिरेगा लेकिन हमें भी निमित्त बनाएगा। फिर अगर हम महाविदेह क्षेत्र में वीतराग भगवान के पास बैठे हों तो वहाँ पर आकर भी हमें खड़ा करके कहेगा, 'क्यों आज्ञा दी थी ? आपको किसने ज़रूरत से ज़्यादा समझदारी करने को कहा था?' तो वीतराग के पास भी हमें चैन से बैठने नहीं देगा! तो खुद तो गिरेगा ही लेकिन दूसरे को भी खींच ले जाएगा । इसलिए भावना करना और हम तुझे भावना करने की शक्ति दे रहे हैं। सही तरीके से भावना करना, जल्दबाज़ी मत करना । जितनी जल्दबाज़ी, उतना ही कच्चा। हम तो किसी को भी ऐसा नहीं कहते कि ब्रह्मचर्य पालन करना, ये आज्ञा पालन करना। ऐसा कह ही कैसे सकते हैं ? यह 'ब्रह्मचर्य क्या चीज़ है?' वह तो हम ही जानते हैं ! यदि तेरी तैयारी हो तो हमारा वचनबल है, वर्ना फिर जहाँ है वहीं पड़ा रह न! यदि यह ब्रह्मचर्य व्रत लेकर संपूर्ण करेक्ट पालन करेगा, तो वर्ल्ड में अनोखा स्थान प्राप्त करेगा और एकावतारी बनकर यहाँ से सीधा मोक्ष जाएगा । हमारी आज्ञा में बल है, ज़बरदस्त वचनबल है। यदि तू कच्चा नहीं पड़ेगा तो व्रत नहीं टूटेगा, इतना अधिक वचनबल है।
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फिर इसका क्या फल आएगा ? सर्वसंग परित्याग उदयमान होगा। उसे त्याग नहीं कहते, वह उदय में आता है। उदय यानी जो बरते! ऐसा सर्वसंग परित्याग उदय में आए तो फिर उसे वीतरागों की दीक्षा दे सकते हैं। ऐसी दीक्षा मिल जाए तो बहुत शक्ति उत्पन्न होती है। दीक्षा का स्वभाव ही ऐसा है । 'व्यवस्थित' भी वैसा ही लेकर आया होता है। सभी की भावना फलेगी। हमारी ओर से आशीर्वाद मिलने से इन सभी में बहुत शक्ति उत्पन्न होगी । यदि ऐसी दीक्षा मिल जाए तो वीतराग धर्म का उद्धार होगा, वीतराग मार्ग का उत्थान होगा और वह होनेवाला है !
तब तक सबकुछ अंदर परखकर देख लेना कि भावना जगत् कल्याण की है या मान की ? खुद के आत्मा को परखकर देखे