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न हो असार, पुद्गलसार (खं-2-१३)
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ज्ञानी की सूक्ष्म बातें
प्रश्नकर्ता : विषय के अलावा अन्य विचार आएँ और काफी देर तक चलते रहें, तो क्या करना चाहिए ?
दादाश्री : भले ही चलें, उसमें दिक्कत क्या है ? उन्हें देखते रहना है कि क्या आए और क्या नहीं। सिर्फ देखते ही रहना है और नोट भी नहीं करना है। जैसे पानी गिरता रहता है, वैसे ही विचार चलते रहते हैं । हमें उन्हें देखते रहना है।
प्रश्नकर्ता : खराब विचार आएँ तो प्रतिक्रमण करते जाना
है ?
दादाश्री : विचार खराब होता ही नहीं है। खराब विचार और अच्छा विचार, वे नाम तो संसार के लोगों ने दिए हैं। जिसे आत्मज्ञान है, उसके लिए विचार मात्र ज्ञेय हैं। विचार को खराब कहेंगे तो फिर मन चिढ़ जाएगा । हम क्यों किसी को बुरा कहें ? वह उसका स्वभाव ही है। अच्छा विचार हो या दुर्विचार, मन दिखाता ही रहेगा। उन्हें हमें देखते रहना है।
मन में जो विचार आते हैं, वे उदयभाव कहलाते हैं। उस विचार में खुद तन्मयाकार हुआ तो आश्रव (कर्म में उदय की शुरूआत, उदय कर्म में तन्मयाकार होना) हुआ कहलाएगा। इससे फिर कर्म जमने लगेंगे। लेकिन यदि उसे मिटा देंगे तो फिर मिट जाएगा। यदि उसका काल पक जाए और अवधि पूरी हो जाए तो बंध पड़ जाएगा। इसलिए अवधि पूरी होने से पहले मिटा देना पड़ेगा, तो फिर उससे बंध नहीं पड़ेगा। इसलिए हमने कहा है न, अतिक्रमण तो हो ही जाएगा, लेकिन फिर तुरंत प्रतिक्रमण कर लेना। ताकि फिर बंध न पड़े।
शरीर तो परेशान नहीं करता न ?
प्रश्नकर्ता : नहीं, यों तो ऐसा लगता है कि मन ही परेशान