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ही नहीं रहा। विषय स्थूल स्वभावी है और आत्मा सूक्ष्म स्वभावी है, ऐसी जागृति रहती नहीं है न! उसमें तो ज्ञानी का ही काम है। ये गाँठें, ये तो आवरण हैं। जब तक ये गाँठे हैं, तब तक आत्मा का स्वाद चखने को नहीं मिलता। जिसके ज़्यादा विचार आएँ, जहाँ दृष्टि अधिक आकृष्ट हो जाए, वहाँ पर गाँठ बड़ी है। दादाश्री ने अक्रम मार्ग में सामायिक को बहुत महत्व दिया है। यहाँ पर तो आत्मस्वरूप होकर दोषों को देखते रहना है। उससे दोष विलय होते हैं, यह एक फायदा और दूसरा खुद ज्ञाता-दृष्टा पद में रहा, उतना आत्मा में रहने का फल भी मिलता है! आनंद-आनंद हो जाता है ! सामायिक में तमाम प्रकार के दोषों को रखकर उनसे मुक्त हुआ जा सकता है। इसके बिना इतनी सारी गाँठे विलय हो सकें, ऐसा नहीं है। अक्रम की यह सामायिक आसान, सीधी और नकद फल देनेवाली है! समूह में की हुई सामायिक बहुत ही प्रभावशाली होती है! पूज्य दादाश्री सामायिक करने पर बहुत जोर देते थे।
अब विषय नहीं चाहिए, लेकिन क्या विषय आपको छोड़ देंगे? खड्डे में गिरना किसे पसंद है? फिर भी खड्डा सामने आ जाए तो क्या वह छोड़ देगा? खड्डे से बचने के लिए क्या करना चाहिए? हर रोज़ एक घंटा दादाश्री से माँगना कि, 'हे दादा, मुझे ब्रह्मचर्य की शक्ति दीजिए।' तो शक्ति मिल जाएगी और साथ ही साथ प्रतिक्रमण भी हो जाएगा। फिर उसकी चिंता या बोझ दिमाग़ पर नहीं रखना है। खड्डे में गिरा कि तुरंत सामायिक करके धो देना।
खड्डे में गिर जाए, उसमें ज्ञानी को कोई हर्ज नहीं है लेकिन तुम उसका उपाय करना। सामायिक! वही एकमात्र उपाय है!
८. स्पर्श सुख की भ्रामक मान्यता स्त्री के अंगों को देखने में सुख है, यह मान्यता बिल्कुल गलत है। निरी गंदगी ही है। लेकिन यह तो जो रोंग बिलीफवाला मन है, वह उस तरफ खींच ले जाता है। लेकिन आज का ज्ञान रोकता है, उसमें से। अगर सौ बार रोंग बिलीफ को सच माना तो सौ बार उसे तोड़ना पड़ेगा। स्त्री के स्पर्श के समय जागृति नहीं रहती और सुख भोग लेता है और स्त्री स्पर्श भी उतना ही पोइज़नस होता है। वह इतना अधिक पोइज़नस
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