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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
चाहिए। यानी ऐसे सारे 'कॉज़ेज़' होने चाहिए। ब्रह्मचारियों के समूह में रहे, तब तक वह प्रख्यात रहता है, लेकिन यदि अलग हो गया तो वह प्रख्यात नहीं रहेगा। फिर वह दूसरे ताल में आ जाता है न?! समूह में रहे तब तो दूसरा विचार ही नहीं आता न? यही अपना संसार और यही अपना ध्येय! दूसरा विकल्प ही नहीं न! और अगर सुख चाहिए, तो वह तो अंदर अपार है, अपार सुख है!!
संग, कुसंग के परिणाम प्रश्नकर्ता : ब्रह्मचर्य के लिए संगबल की ज़रूरत पड़ती है न?
दादाश्री : हाँ, ज़रूरत पड़ती है।
प्रश्नकर्ता : तो उसका मतलब ऐसा है कि मेरा निश्चय उतना कच्चा है?
दादाश्री : नहीं, संगबल की ज़रूरत तो है। भले ही कैसा भी ब्रह्मचारी हो, लेकिन कुसंग उसके लिए मात्र हानिकारक ही है। क्योंकि कुसंग का रंग यदि लग जाए तो वह हानि किए बगैर रहेगा ही नहीं।
प्रश्नकर्ता : इसका मतलब ऐसा हुआ कि कुसंग निश्चयबल को काट देता है ?
दादाश्री : हाँ, निश्चयबल को काट देता है! अरे, इंसान में पूरा ही परिवर्तन कर देता है और सत्संग भी इंसान में परिवर्तन कर देता है। लेकिन एक बार जो कुसंग में चला गया हो, उसे सत्संग में लाना हो तो बहुत मुकिल हो जाता है और सत्संगवाले को कुसंगी बनाना हो तो देर नहीं लगेगी। क्योंकि कुसंग वह फिसलनवाला है, नीचे जाना है जबकि सत्संग का मतलब चढ़ना है। कुसंगी को सत्संगी बनाना हो तो चढ़ना होता है, उसमें बहुत