________________
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
दादाश्री : दूसरी कोई गलतियाँ होंगी तो चला लेंगे। विषय संयोग नहीं होना चाहिए । लेकिन तुझे हमने इस गिनती में नहीं लिया है और जिसे गिनती में लिया हो, यह बात उसके लिए है। तू जब तेरा यह टेस्ट एक्जामिनेशन देगा, तब तुझे गिनती में ले लेंगे। फिर तुझे भी डाँटेंगे। अभी तुझे नहीं डाँटेंगे। मज़े कर । खुद के हित के लिए मज़े करने हैं न? किस के लिए मज़े करने हैं ?
२३८
प्रश्नकर्ता : मज़े करने में खुद का हित तो नहीं होता है। दादाश्री : नहीं होता । तो फिर मज़े क्यों करता है ?
वहाँ पर दादा की मौन सख्ती
विषय में संयोग हुआ तो हमारी नज़र कड़वी हो जाती है, हमें तुरंत सबकुछ पता चल जाता है ? 'दादा' की नज़र कड़वी रहती है, वह सिर्फ विषय के बारे में ही, बाकी चीज़ों में नहीं । बाकी चीज़ों में कड़वी नज़र नहीं रखते। दूसरी गलतियाँ हो सकती हैं, लेकिन 'यह' तो होनी ही नहीं चाहिए, अगर हो जाए तो हमें बता देना। रिपेयर कर देंगे, छुड़वा देंगे।
प्रश्नकर्ता : हर तरह से छूटने के लिए ही यहाँ दादा के पास आना है।
दादाश्री : उसमें हर्ज नहीं । इसीलिए तो इन आप्तपुत्रों से मैंने सब लिखवा लिया है ताकि मुझे नहीं निकालना पड़े, तुम्हें अपने आप ही चले जाना है।
वह विषय यदि ‘संयोग' रूप में हो रहा हो न, तो उस पर हमारी कड़वी नज़र होने पर वह अपने आप ही छूट जाता है। ताप ही छुड़वा देता है। हमें डाँटना नहीं पड़ता । इतनी कड़वी नज़र पड़ती है, उस ताप की वजह से उसे रात को नींद तक नहीं आती। वह सौम्यता का ताप कहलाता है । प्रताप का ताप