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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
है। कई लोग एकदम सतर्क रहते हैं। जिसे सतर्क रहना है, उसे । वर्ना ढीला पड़ जाता है।
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नज़र सख्त कर दें न तो फाइल बनेगी ही नहीं । उसे बुरा लगे ऐसा व्यवहार करेंगे तो फाइल नहीं बनेगी। मीठा व्यवहार करोगे तो चिपकेगी और खराब व्यवहार किया तो वह गुनाह दूसरे दिन माफ हो सकता है। हमें इस तरह बात करनी चाहिए कि वह हम से चिपके नहीं। वह गुनाह माफ होने का रास्ता है लेकिन यह चिपका, उसका गुनाह माफ होने का रास्ता नहीं है । उसी से यह संसार खड़ा है सारा ।
प्रश्नकर्ता : फाइल हो, उस पर हमें तिरस्कार नहीं हो रहा हो तो क्या जान-बूझकर तिरस्कार खड़ा करना चाहिए ?
दादाश्री : हाँ। तिरस्कार क्यों नहीं होता? जो अपना इतना अहित कर रही है, उस पर तिरस्कार नहीं होता ? मतलब अभी पोल है ! चोर नीयत है! अपना अहित करे, अपना घर जला दिया हो फिर भी क्या हमें उसके प्रति तिरस्कार नहीं होना चाहिए? यह तो भीतर चोर नीयत है, ऐसा हम समझ जाते हैं।
प्रश्नकर्ता : भीतर तिरस्कार होता है, लेकिन बाद में बुद्धि पलट देती है
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दादाश्री : पलट देती है, उसका कारण यह है कि चोर नीयत है।
प्रश्नकर्ता : बहुत परिचय हो चुका हो तो उसका अपरिचय कैसे करें ? तिरस्कार करके ?
दादाश्री : ' नहीं है मेरा, नहीं है मेरा' करके कई प्रतिक्रमण करना। 'नहीं है मेरा, नहीं है मेरा' करके फिर सब निकाल देना, फिर आमने-सामने मिल जाए तो उस समय सुना देना चाहिए, 'क्या मुँह लेकर घूम रही है, जानवर जैसी, यूजलेस ।' बाद में फिर वह मुँह नहीं दिखाएगी।