________________
२१२
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
विचार होते हैं, चित्त का हरण शायद न भी हुआ हो। कई बार चित्त गया हो लेकिन विचार में न भी हो। ऐसा हो सकता है और नहीं भी हो सकता।
मुक्त दशा का थर्मामीटर तुझे ऐसा अनुभव है कि जब विषय में चित्त जाता है, तब ध्यान ठीक से नहीं रह पाता?
प्रश्नकर्ता : चित्त यदि ज़रा भी विषय के स्पंदनों को टच करके रहे तो कितने ही समय तक तो खुद की स्थिरता नहीं रहने देता और चित्त उसे छूकर वापस अलग हो गया हो तो
खुद की स्थिरता नहीं जाती। वह यदि एक ही बार यों 'टच' हुआ हो, वह भी स्थूल में नहीं लेकिन सूक्ष्म में भी हुआ हो, तो भी वह कितने ही समय तक हिलाकर रख देता है।
दादाश्री : हमारा चित्त कैसा होगा?! वह कभी भी जगह से हटा ही नहीं है! हम बोलते हैं तब निरंतर यों मुरली की तरह डोलता रहता है। तब जाकर चित्त की प्रसन्नता उत्पन्न होती है। वर्ना मुँह खिंचा हुआ रहता है, जुबान भी खिंची हुई रहती है। लोग तो आँखें पढ़कर ही बता देते हैं कि 'यह खराब दृष्टिवाला है।' जिसकी ज़हरीली दृष्टि हो उसके लिए भी लोग बता देते हैं कि 'इसकी आँखों में ज़हर है।' उसी तरह यह भी समझ सकते हैं कि आँखों में वीतरागता है। लोग सबकुछ समझ सकते हैं, लेकिन दाल-चावल-रोटी-सब्जी खाकर सोचेंगे तो!! लेकिन खाकर सो जाएँ तो नहीं समझ सकेंगे।
मैं क्या कहना चाहता हूँ कि पूरी दुनिया में घूमो। लेकिन यदि कोई भी चीज़ आपके चित्त का हरण नहीं कर सके तो आप स्वतंत्र हो। कितने ही सालों से मैंने अपने चित्त को देखा है कि कोई चीज़ इसे हरण नहीं कर सकती इसलिए फिर मैं अपने आप समझ गया कि, 'मैं बिल्कुल संपूर्ण स्वतंत्र