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स्पर्श सुख की भ्रामक मान्यता देखते ही जुगुप्सा
लोग विषय की गंदगी में पड़े हुए हैं। विषय के समय उजाला कर दे तो उसे अच्छा नहीं लगता । उजाला हो जाए तो घबरा जाता है। इसलिए अंधेरा रखता है । उजाला हो जाए तो भोगने की जगह को देखना तक अच्छा नहीं लगे। इसलिए कृपालुदेव ने भोगने के स्थान के लिए क्या कहा है ?
प्रश्नकर्ता : 'यह चीज़ वमन करने योग्य भी नहीं है । ' दादाश्री : उल्टी करनी हो, तो उस जगह पर करोगे या दूसरी किसी अच्छी जगह पर करोगे ?
प्रश्नकर्ता : कितना कुछ देखा होगा उन्होंने ?
दादाश्री : देखा है न, ज्ञानियों ने। एक तो आँख को अच्छा नहीं लगता। कान को भी अच्छा नहीं लगता। नाक में तो दुर्गंध आती है। यदि उस जगह को छूआ हुआ हाथ सूँघ ले तो मरी हुई मछली हो न, ऐसी दुर्गंध आती है, और अगर चखने को कहा हो तो ? एक भी इन्द्रिय को अच्छा नहीं लगता सिर्फ स्पर्श को अच्छा लगता है, वह भी सिर्फ रात को ही । दिन में करने को कहें न वहाँ पर, तो अच्छा नहीं लगेगा ।
एक बनिया मेरे साथ बैठने आता था। उस समय मेरी उम्र ६०-६२ साल की थी। उसकी उम्र भी ६० - ६२ की। उसने मेरे