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पछतावे सहित प्रतिक्रमण (खं-2-७)
इस जन्म में निर्ग्रथ हो सकें, ऐसा है । अपना यह ज्ञान निर्ग्रथ बनाए, ऐसा है। जो थोड़ी बहुत गाँठें बची होंगी, उनका अगले जन्म में निकाल हो जाएगा, लेकिन सभी ग्रंथियों का निबेड़ा आ जाएगा, ऐसा है !
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विषय बीज निर्मूल शुद्ध उपयोग से
विषय के विचार जिसे अच्छे नहीं लगते हों और उनसे छूटना हो वह उन्हें इस सामायिक से, शुद्ध उपयोग से, उन्हें विलय कर सकता है। इस ‘ज्ञान' के बाद जिसे जल्दी हल लाना हो उसे ऐसा करना चाहिए। सभी को इसकी ज़रूरत नहीं है।
प्रश्नकर्ता : फिर भी ऐसा नहीं लगता कि इसे पहुँच पाएँगे।
दादाश्री : ऐसा कुछ भी नहीं है। एक राजीपा (गुरुजनों की कृपा और प्रसन्नता) और दूसरा सिन्सियारिटी, सिर्फ ये दो ही हों तो सबकुछ प्राप्त हो सकता है। बाकी इसमें कोई मेहनत करनी ही नहीं होती।
प्रश्नकर्ता : ये सुबह में सामायिक करते हैं, तो उसमें पचास मिनट बाद तो सुख छलकने लगता है।
दादाश्री : आएगा ही न ! क्योंकि आप आत्मस्वरूप होकर सामायिक करते हो तो आनंद आएगा ही न! आत्मा अचल है।
अब कईं यह सामायिक दिन में दो-दो, तीन-तीन बार करते हैं। क्योंकि स्वाद चख लिया है न! यह वीतरागी ज्ञान मिलने के बाद उसका स्वाद भी कुछ और ही होता है, फिर कौन छोड़ेगा ? बाहर के लोगों की सामायिक में तो सब हाँकना पड़ता है और इसमें तो किसी को हाँकना करना नहीं होता। सिर्फ देखते ही रहना है, ज्ञाता-दृष्टा। उसमें भी वापस दो फायदे होते हैं ! एक तो खुद को सामायिक का फल मिलता है, मतलब क्या ? कि जब यह सब अचल हो जाता है तब आत्मा के स्वभाव का पता चलता