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बार-बार मज़बूत करना है और ज्ञानी के पास जाकर निश्चय मज़बूत करवा लेना चाहिए और बार-बार बोलना, 'हे दादा भगवान, मैं ब्रह्मचर्य पालन करने का निश्चय मज़बूत कर रहा हूँ। मुझे निश्चय मज़बूत करने की शक्ति दीजिए'। तो वह मिलेगी ही। जिसका निश्चय नहीं डिगता, उसका निश्चय सफल होता ही है और निश्चय डगमगाया कि सभी भूत घुस जाते हैं!
__ ब्रह्मचर्य का दृढ़ निश्चय धारण होने के बाद साधक को बार-बार एक प्रश्न सताता रहता है कि अंदर विषय के विचार तो आ रहे हैं। उसके लिए दादाश्री मार्ग बताते हैं कि विषय के विचार आएँ, उसमें हर्ज नहीं है लेकिन जो विचार आते हैं, उन्हें देखते रहो लेकिन 'तुम' उनके अमल में एकाकार मत हो जाना। वह कहे 'हस्ताक्षर करो!' तो भी तुम स्ट्रोंगली मना कर देना! और उसे देखते ही रहना। यह है मोक्ष का चौथा स्तंभ, तप और फिर उसके प्रतिक्रमण करवाना। मन-वचन-काया से जो जो विकारी दोषों, इच्छाएँ, चेष्टाएँ, वगैरह, उन सभी दोषों का प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। अगर विषय के विचार से मुक्त हो जाए तो कैसा आनंदआनंद हो जाता है। तो फिर यदि उससे हमेशा के लिए मुक्त हो जाएगा तो कितना आनंद रहेगा?
अब्रह्मचर्य के विचारों के सामने ज्ञानी से ब्रह्मचर्य की शक्तियाँ माँगते रहने से दो-पाँच साल में वैसे उदय आ जाएँगे। जिसने अब्रह्मचर्य जीत लिया उसने पूरी दुनिया जीत ली! उस पर सभी देवी-देवता बहुत खुश रहते हैं!
विषय के विचार आएँ तो, उन्हें दो पत्तियाँ निकलने से पहले ही उखाड़कर फेंक दो! फूटने के बाद विचार कोंपल से आगे, दो पत्तियों तक खिल नहीं जाने चाहिए। वहीं पर तुरंत ही उखाड़कर फेंक देने पड़ेंगे, तभी छूटा जा सकेगा! और यदि वह उग गया तो वह अपना असर दिखाए बगैर जाएगा ही नहीं!
विषय की दो स्टेज। एक चार्ज और दूसरा डिस्चार्ज। चार्ज बीज को धो देना है।
रास्ते पर निकले और 'सीन सीनरी' आए कि दृष्टि आकृष्ट हुए बिना नहीं रहती। वहाँ दृष्टि गड़ाएँगे तभी दृष्टि बिगड़ेगी न? इसलिए नीचा